लोकसभा के टिकटों में युवाओं और महिलाओं को प्राथमिकता
संजय तिवारी
भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनावों को एक अवसर मानते हुए अगले 25 वर्षों की नई राजातीतिक अवधारणा पर कार्य करना शुरू कर दिया है। आज दिल्ली में अभी जो बैठक चल रही है उसका भी यही थीम है। नारीशक्ति प्रथम । इस बार के चुनाव में युवाओं और महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर टिकट देकर आगामी 25 वर्षों के लिए अत्यंत ऊर्जावान और क्रियाशील टीम भारत का आधार तैयार करने की रणनीति पर कार्य शुरू हो चुका है। यह सब विजन मोदी के सफल क्रियान्वयन के लिए आवश्यक भी है। इसके संकेत स्वयं प्रधानमंत्री के संसद के बजट सत्र में दिए गए विस्तृत संबोधन में भी दिखे हैं।
इसको समझने के लिए प्रधानमंत्री के अमृत कल की परिधि को भी समझना होगा। वर्ष 2047 तक अमृत काल मानते हुए भारत को विश्वगुरु बनाने का लक्ष्य निर्धारित हो चुका है। तब भारत अपनी स्वाधीनता के 100 वर्ष पूरे कर रहा होगा। उस समय तक राष्ट्र को सक्षम और अयंत ऊर्जावान राजनीतिक टीम की जरूरत है। ऐसे में प्रधानमंत्री ने अभी से संकेत दे दिया है कि नई लोकसभा में अब अत्यधिक युवा चेहरों की जरूरत है। इसमें युवा नारीशक्ति की भी बहुत जरूरत होगी। यद्यपि महिला आरक्षण के रूप में नारी शक्ति वंदन कानून पास हो चुका है लेकिन उसको आधिकारिक रूप से लागू होने में अभी कई तकनीकी कार्य शेष हैं । ऐसे में अपने टिकट बंटवारे में भाजपा नारीशक्ति वंदन के संकेत स्पष्ट मानकर महिला प्रतिनिधित्व भी बढ़ा सकती है। यह कदम भाजपा के खिलाफ चुनाव लडने वाले दलों के लिए सांसत जैसा होगा क्योंकि वे हल्ला तो बहुत करते हैं लेकिन महिलाओं को वैसा प्रतिनिधित्व देते नहीं हैं। इससे भाजपा देश की महिलाओं को स्पष्ट संदेश देकर आधी आबादी को स्वयं से जोड़ सकती है।
इस बार का चुनाव वैसे भी बहुत अलग होने जा रहा है। इसका संकेत प्रधानमंत्री का श्री अयोध्या जी में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय का वह उद्बोधन है जिसमे वह बार बार काल चक्र के परिवर्तन और अगले एक हजार वर्ष की भारत की सनातन यात्रा की नीव की चर्चा करते हैं। यह पारंपरिक राजनीति के गणित के फार्मूले सिद्ध करने वाले कथित राजनीतिक भविष्यवक्ताओं की समझ से परे है। इसका संकेत स्वयं प्रधानमंत्री ने संसद में कर दिया जब उन्होंने कहा कि उनका तीसरा कार्यकाल बहुत बड़े और बहुत कड़े फैसलों का होने वाला है।
संकेत समझिए। अब राजनीति बदल रही है। राजनीति में मठाधीशी समाप्त होगी और नए क्रियाशील चेहरे जगह पाएंगे। ऐसा भाजपा के टिकट बंटवारे में भी दिख सकता है। पारंपरिक राजनीति की परिभाषा में बहुत दिग्गज माने जाने वाले चेहरे अगर टिकट की सूची में स्थान नहीं पा सकें तो चौकने की जरूरत नहीं है। टीम भारत के निर्माण में नए, सांगठनिक समर्पण वाले ऊर्जावान चेहरे जरूरी हैं। वैसे भी यह चुनाव केवल एक ही चेहरे का है। हर टिकट पर नरेंद्र मोदी की छाप होनी है। चुनाव चिन्ह पर वोट मिलने हैं। ऐसे में किसी दिग्गज को भ्रम भी नहीं होना चाहिए कि कोई विजय उसकी है।
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