- सबको गुरु नहीं बनाना चाहिए, पानी पियो छानकर, गुरु करो जानकर
उज्जैन वेद वाणी सुनाने वाले, इस धरती, दुनिया के मेहमान, जानकारी लेकर ही गुरु बनाना चाहिए तो सब तरह की जानकारी अपने सतसंग में करा देने वाले, संकट में मददगार, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आप कुछ लोग ऐसे हो जो पहले मांस खाते रहे होंगे लेकिन सतसंग में आते-जाते जानकारी हो गई कि अगर मनुष्य शरीर के रक्त को दूषित करेंगे, जानवरों का मांस खाएंगे तो उससे जो खून बनेगा तो रोग होगा, बुद्धि खराब होगी तो आपने छोड़ दिया। कहने का मतलब यह है की जानकारी करना और कराना चाहिए।
जो ब्रह्मा को वेद वाणी सुनाई पड़ी थी वह आपको भी सुनाई पड़ सकती है
किस बात की जानकारी करना कराना चाहिए? कि मनुष्य शरीर जो मिला है, यह कीमती है। इसको गंदा मत करो। बाहर से सफाई तो कर लेते हैं, लेकिन अंतरात्मा की सफाई जरूरी है। और जब तक वो नहीं होगी तब तक कोई भी अंदर की जानकारी नहीं हो पायेगी, जो गूढ़ रहस्य है, उससे जो देवी-देवता मनुष्य शरीर में देखे जा सकते हैं, पार ब्रह्म लोकों के धनी देखे जा सकते हैं, जो पांचों नाम की ध्वनि आ रही है वो सुनी जा सकती है, वह वेदवाणी उतरी है, वेद पाए ब्रम्हा हरसाई, ब्रह्मा खुश हो गए थे जब उनको वेदवाणी सुनाई पड़ी थी, वह वेद वाणी आपको भी सुनाई पड़ सकती है लेकिन जानकारी होगी तभी तो। न जानकारी में तो समय आपका बेकार चला जा रहा है।
यह मानव शरीर जा रहा है
यह शरीर बुड्ढा होता चला जाएगा। इसकी उम्र घटती चली जाएगी। कबीरजी नेकहा- कबीर यह तन जात है, सकै तो ठौर लगाव। कै सेवा कर सन्त की, कै गुरु के गुन गाव।। दरवाजे पर कोई आ जाए तो वह भी एक तरह से मेहमान ही होता है। सन्त सतगुरु भी इस धरती के मेहमान होते हैं। कहां से भेजे जाते हैं? जहां से सारे के सारे जुड़े हुए हैं। 33 करोड़ देवी-देवता, ब्रह्मा विष्णु महेश, उनकी मां आद्या महा शक्ति, काल भगवान- ब्रह्मा विष्णु महेश के पिता, ब्रह्म, पारब्रह्म, काल महाकाल, यह सुन्न भंवर गुफा जितने भी स्थान है, त्रिकुटी के, यहां के जितने भी जीव हैं, सब जुड़े हुए हैं, वहां से भेजे जाते हैं। जीवों को उबारने, निकालने के लिए सन्त इस धरती पर मनुष्य शरीर में डोलते, चलते हैं। एक तरह से इस धरती के, पूरी दुनिया के मेहमान होते हैं।
सबको गुरु बनाना नहीं चाहिए
भारत की परंपरा रही है कि कोई भी साधू वेश में हो, गृहस्थों से अलग वेश धारण किये हो, लोगों को जानकारी मिले तो लोग प्रणाम सलाम करने के लिए चले आते हैं। पूरे साध, सन्त की लगभग बराबरी के ही होते हैं। सबकी पहचान अलग-अलग होती है। साध की, सन्तों की, गुरु की पहचान अलग-अलग होती है। कहा गया है- सबको गुरु नहीं बनाना चाहिए। पानी पियो छानकर, गुरु करो जानकर। एक बहुत कम कीमत की (मिट्टी की) हंडिया खरीदनी हो तो उसमें भी पूरा देखते हो कि कहीं इसमें सुराख तो नहीं फिर खरीदते हो। तो जिसके हाथ में पूरे जीवन की बागडोर समर्पित करना है, उनको अगर बिना देखे गुरु बना लिया जाए, विश्वास कर लिया जाए तो धोखा भी हो सकता है।
गुरु के गुण गाने का मतलब क्या है
यह कि गुरु की तारीफ की जाए? गुरु के तारीफ का पुल बांध दिया जाए? या गुरु को ही सब कुछ कहता रह जाए, आप भगवान हो, आप प्रीतम, मेरे प्यारे हो? कहा गुरु के गुण गाओ, यानी गुरु जो बताते हैं उस गुण को गाओ, लोगों को जानकारी कराओ। वह जो मिशन, उद्देश्य को लेकर के चल रहे हैं, उसका विस्तार करो। उसे लोगों को बताओ समझाओ, उससे वाकिफ कराओ, उससे फायदा दिलाओ। लोगों को मनुष्य शरीर के बारे में बताओ। मनुष्य शरीर का समय निकल रहा है। एक-एक दिन इसका समय खत्म हो रहा है। यह किस काम के लिए मिला है- वह तुमको अपना काम करना है, भगवान के भजन करने, उनको पाने के लिए, इस मृत्यु लोक में दोबारा न आना पड़े, मनुष्य शरीर में आकर के दुबारा पैदा न होना पड़े, जन्मने-मरने की पीड़ा बर्दाश्त न करना पड़े, इसलिए मनुष्य शरीर मिला है, इसको बताने की जरूरत है।
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