लखनऊ बचाओं संघर्ष समिति ने विस्थापितों से मिल सुनी उनकी पीड़ा
विशेष संवाददाता
लखनऊ। लखनऊ बचाओ संघर्ष समिति के तत्वावधान में महिला संगठन एडवा, एपवा और भारतीय महिला फेडरेशन के एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल ने अकबरनगर के विस्थापित परिवारों से बसंत कुंज जाकर मुलाकात की और उनकी पीड़ा और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आने वाली परेशानियों को नोट किया। एपवा की मीना सिंह ने कहा कि बसंत कुंज चारबाग स्टेशन से लगभग 22 किमी दूरी पर है और अकबरनगर से 35 किमी दूर है। अकबरनगर बचाओ के अभियान में बेहद सक्रिय सुमन पांडे व बुशरा ने महिलाओं को बुलाकर हमारी एक बैठक आयोजित की। साहिबा बानो - के 6 बच्चे हैं। उनके पति अकबर नगर सड़क पर ही ठेला लगाते थे। लड़कियां ट्यूशन पढ़ातीं थीं। चार कमरों का घर था। अब कोई काम नहीं है। शौहर ने बसंत कुंज में चाय का ठेला लगाया किन्तु बहुत कम बिक्री होती है। बच्चे घर बैठे हैं। दो वक्त का खाने का मुश्किल से इंतज़ाम हो पाता है।
मीना के पति फर्नीचर की दुकान पर मज़दूरी करते थे। अब वे सुबह बाइक से कल्याणपुर रिंग रोड जाते हैं जिसमें 200 रुपये का पेट्रोल खर्च होता है और कुल 375 रुपये की दिहाड़ी मिलती है ( यदि मिल गई तो )। 3 बच्चे हैं जिसमें दो को 4 किमी दूर पढ़ने भेज रहे हैं। हाईवे पार कर बच्चे स्कूल जाते हैं जिसमें दुर्घटना का डर बना रहता है। अकबरनगर में पास के ही स्कूल में पढ़ते थे। तालिमुन्निसा - अकबरनगर में चार मंजिला घर था। शौहर लुलू माॅल के पीछे गांव में फर्नीचर का काम करते हैं। बाइक से जाने पर पैट्रोल के खर्च में ही कमाई चली जाती है। दो बच्चे रजत डिग्री कालेज ( फैजाबाद रोड ) में पढ़ने जाते हैं। 3000 रुपये केवल किराये में खर्च होते हैं। आगे कैसे खर्च चलेगा, पता नहीं है। नेहा उपाध्याय के पति की मृत्यु हो चुकी है, वे ननद के घर में रहतीं हैं। उन्हें घर नहीं मिला है। सैयदुन्निसा बुजुर्ग महिला हैं। अपनी बहू के साथ रहतीं हैं। अकबरनगर में तीन मंजिला घर था। वे अपने घर से निकल नहीं रहीं थीं तो उन्हें एलडीए और पुलिस वालों ने हाथ पकड़कर घर से निकाला। यह पीड़ा उनकी आंखों से छलक उठी थी।
सुमन पांडे जो अकबरनगर बचाओ अभियान में बहुत सक्रिय थीं, उनका 6 कमरे का घर था। उनके पति सरकारी माली हैं।मकान बनाने के लिए उन्होंने लोन लिया था जिसकी हर महीने 27,551 रुपये क़िस्त जाती है। उनका कहना था कि जब बसंत कुंज के घर की किस्त शुरू हो जायेगी तो कैसे घर चलेगा। सुमन अपनी एक साथी बुशरा के साथ अकबरनगर बचाओ के अभियान में लगी रहीं। वे चार बार मुख्यमंत्री के दरवाजे पर अकबरनगर निवासियों की फरियाद लेकर गईं जहां मुख्य सचिव ने अकबरनगर निवासियों को "नाले का कीड़े" तक कह दिया। वे कुछ लोगों के साथ कुकरैल नाले के उद्गम स्थल अस्ती गांव भी गईं जहां उन्होंने एक सूखा कूंआ देखा। सरकारी दावों के अनुसार यह " नदी " अस्ती से शुरू होकर 17 गांवों से गुजरती है। धूप गर्मी की परवाह किए बगैर वे जंगलों में ड्रोन कैमरा वाले को लेकर गईं किंतु कहीं भी सरकार के दावे के अनुसार "कुकरैल नदी" नहीं दिखी। 13 जून को भारी पुलिस बल के साथ एलडीए की टीम आ गई और घरों पर बुलडोजर चलने लगे।
रोते चीखते बच्चों महिलाओं को घरों से सामान भी नहीं निकालने दिया गया। सुमन और कुछ महिलाओं ने विरोध किया तो महिला पुलिस अधिकारी ने जेल भेजने की धमकी दी। एक एक ईंटा जोड़कर बनाया हुआ आशियाना उनकी आंखों के सामने ढ़हा दिया गया। यह पीड़ा शूल की तरह चुभती रहती है। सुमन की साथी बुशरा ने विवाह नहीं किया। वे बच्चों को पढ़ाती थीं। जिस समय घर तोड़ा गया उस समय वे 45 बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहीं थीं। अपनी मेहनत से उन्होंने अकबरनगर में घर बनवाया था। मोहर्रम के ताजि़यादारी याद कर वे रोने लगीं। अकबरनगर का ताजिया पूरे लखनऊ में मशहूर था। इस बार बसंत कुंज में लगता है कि जानबूझकर मोहर्रम में 9-10 जुलाई को लाइट काट दी गई थी। अकबर नगर की यादों ने इतना विह्वल किया कि यहां से बहुत से लोग पैदल ही अकबर नगर पहुंच गये और वहां उजड़ा हुआ दयार देखकर बहुत रोये। बुशरा का यही कहना था कि उन सबको दोबारा अक़बर नगर में ही ज़मीन दे दी जाये। वहां उन्हें छोटा ही घर मिल जाये ताकि वे लोग वहां अपना गुज़ारा कर लेंगे।
मिथलेश के पति मज़दूरी करते थे। यहां मज़दूरी नहीं मिलती।दो बच्चे हैं जो घर बैठे हैं। सुबह की चाय पीते हैं तो दोपहर के खाने की चिंता सताती है। एक बेटा 2022 में लापता हो गया था। मिथलेश को चिंता है कि यदि वह वापस लौटेगा तो अकबरनगर को कहां ढूंढेगा। संगीता के पति महानगर में डाला चलाते थे, अब कहां जायें। डाला लेकर गये और काम नहीं मिला तो पैट्रोल का पैसा बर्बाद हो जाता है। अकबरनगर में 5 कमरे का घर था। पढ़ने वाले दो बच्चे घर बैठे हैं। पहले वे पेपर मिल कालोनी के स्कूल में पढ़ते थे। बुजुर्ग सास हैं जो जब से आईं हैं , कहतीं हैं कि भैंसाकुंड में छोड़ दो। यहां तीसरी मंजिल पर घर है, वे बस एक जगह बैठी रहतीं हैं।
अकबरनगर की रट लगाते रहतीं हैं। सरला के पति कैटरिंग का काम करते थे। दो दुकानें भी थीं। तीन मंजिला घर था जिसमें 9 कमरे थे। तीन बच्चे हैं। पढ़ाई का इंतजाम अभी नहीं हो पा रहा है। पति का काम बंद है। सब कुछ टूट गया। घर का काफी सामान वहीं रह गया। 12 जून 24 को उनके घरों से बिजली के मीटर उखाड़े गये। पानी बिजली सब बंद कर दिया था। घेराबंदी कर उन्हें उनके घरों से बेइज्जत कर निकाला गया। राबिया खा़तून और सरस्वती को भी घर नहीं मिला है , वे अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहीं हैं।
मो अज़ीज उम्र 25 वर्ष बादशाह नगर के किनारे सड़क पर अटैची सिलते थे । 19 जुलाई को पुलिस वाले उनकी मशीन उठा ले गये क्योंकि 20 जुलाई को योगी आदित्यनाथ अकबरनगर के मलबे पर सौमित्र शक्ति वन का उद्घाटन करने वाले थे। अजी़ज इस बात से इतना टूट गये कि बसंत कुंज के घर आकर उन्होंने खिड़की की राॅड से फांसी लगा ली। अपने पीछे वे 20 साल की पत्नी और 6 महीने की बच्ची छोड़ गये हैं। घर में कोई कमाने वाला नहीं है । 85 वर्षीय बाबा रिक्शा चलाते थे। वे अकबरनगर में 1970 में आयें थे। पुलिस की ज्यादती के शिकार इस परिवार को सरकार से कोई मुवाअजा नहीं मिला है।
इसी प्रकार वहां जो महिलाएं मिलीं, वे घरेलू कामगार थीं, बुटीक में काम करतीं थीं, माॅल में सफाई या किसी शो रूम में काम करतीं थीं जो अब बेरोज़गार हैं। बुद्धबाजार में ठेला लगाने का काम भी करतीं थीं जो इस जंगल में नहीं हो सकता है। बहुत कम बच्चे पढ़ रहे हैं क्योंकि सरकारी स्कूल बहुत दूर है और प्राइवेट स्कूलों की फीस नहीं दे सकते हैं । सरकार ने अकबरनगर वालों के घरों को छीनकर उन्हें शहर से 35 किमी की दूरी पर काले पानी की सज़ा दे दी है। कहने को ये प्रधानमंत्री आवास हैं किन्तु ये छोटे-छोटे दड़बे हैं जहां मूलभूत सुविधाओं का बहुत अभाव है। महिलाओं से बातचीत के मुख्य बिंदु थे -
- लगभग तीन हज़ार बच्चे अकबरनगर के स्कूलों में पढ़ते थे जिसमें से अब ज्यादा से ज्यादा 20% ही पढ़ने जा रहे हैं। पास में सरकारी स्कूल नहीं हैं।
- रोज़गार का कोई साधन नहीं है। उनके रोज़गार अकबरनगर के आसपास थे। अब उतनी दूर जाने में इतना किराया खर्च होगा कि घर का ख़र्च चलाने के लिए कुछ नहीं बचता है।
- बसंत कुंज से कहीं जाने के लिए ट्रांसपोर्ट का साधन नहीं है। एक बस सुबह सात बजे आती है, उसके बाद कोई साधन नहीं है।
- अस्पताल की कोई सुविधा नहीं है। यदि कोई गंभीर रूप से बीमार हो जाये तो जान के लाले पड़ जायेंगे।
- राशन का कोटा आज भी नहीं खुला है ।
- मूलभूत सुविधाएं बहुत लचर हैं। पानी प्रदूषित है जिससे लोग पेट की बीमारी के मरीज हो गये हैं। बिजली की घंटे के लिए कट जाती है। गंदगी इतनी ज्यादा है कि दिन में भी मच्छरों का प्रकोप रहता है। जो आवास मिले हैं उनकी गुणवत्ता का यह हाल है कि सीवर बह रहा है, फर्श उखड़ रही है। जगह-जगह से प्लास्टर उखड़ रहा है।
- महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को बहुत ख़तरा है। सूनसान पड़ी जगहों पर कोई भी घटना हो सकती है । कुछ समय पहले एक 9 साल की बच्ची शिकार होते होते बच पाई।
- एक बात यह भी सामने आई कि अविवाहित लड़कियों (अधिकांश उम्र के उस पड़ाव पर कि उन्होंने जीवन भर अविवाहित रहने का फैसला किया ), तलाकशुदा महिलाओं या फिर पति के न रहने पर अकेली रह गईं महिलाओं को आवास नहीं मिला है। बुशरा के अनुसार अविवाहित लड़कियों की संख्या लगभग 100 है। अब ये महिलाएं आश्रित होकर जीवन बिता रहीं हैं।
अकबरनगर के अधिकांश निवासी 1970 से 1980 के बीच बसे हुए हैं। पहले इस स्थान का नाम मेहनगर और रहीम नगर था जो बाद में उप्र के राज्यपाल अकबर अली के नाम पर अकबर नगर रखा गया। सभी महिलाओं का कहना था कि उनके घरों को तोडकर जो अन्याय हुआ है, सरकार उसका मुवाअजा दे और अकबर नगर की ही ज़मीन पर उन्हें पुनर्स्थापित किया जाये।
0 टिप्पणियाँ
Please don't enter any spam link in the comment Box.