स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन रजनीश कुमार ने अलग-अलग सेक्टर्स में निवेश नहीं बढ़ने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ब्याज दरों में कटौती के बावजूद निवेश नहीं बढ़ रहा है। उन्होंने कहा है कि 2008 में आर्थिक संकट के दौरान बैंकों ने नियमों को आसान बनाकर कर्ज देने में बढ़ोतरी की थी। इसकी देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इसलिए इस बार बैंक समझदारी से काम ले रहे हैं। वहीं, नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि भारत की आर्थिक विकास दर में 2018 से ही गिरावट आई है। अरविंद पनगढ़िया ने सात फीसदी की विकास दर हासिल करने के लिए भारत को मुक्त व्यापार और बैंकों के फिर से पूंजीकरण की सख्त जरूरत है...
देश के सबसे बड़े कर्जदाता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन रजनीश कुमार ने अलग-अलग सेक्टर्स में निवेश नहीं बढ़ने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ब्याज दरों में कटौती के बावजूद निवेश नहीं बढ़ रहा है, जबकि बैंकों की ओर से कटौती का फायदा ग्राहकों को दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस साल क्रेडिट ग्रोथ की दर सुस्त रही है, क्योंकि पूंजीगत व्यय सामान्य रफ्तार से नहीं हो रहा है।
रजनीश कुमार ने ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन के 47वें राष्ट्रीय प्रबंधन सम्मेलन में कहा कि 2008 में आर्थिक संकट के दौरान बैंकों ने नियमों को आसान बनाकर कर्ज देने में बढ़ोतरी की थी। इसकी देश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इसलिए इस बार बैंक समझदारी से काम ले रहे हैं। आर्थिक विकास की बहाली के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करना ही एकमात्र उपाय है। उन्होंने कहा कि भारत के पास 10 लाख करोड़ रुपये मूल्य के पांच साल के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं।
एसबीआई के चेयरमैन ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था को अकेले इन्हीं इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के दम पर पटरी पर लाया सकता है। दरअसल, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश बढ़ाकर रोजगार के नए अवसर पैदा किए जा सकते हैं। रोजगार मिलने पर बाजार में मांग भी बढ़ेगी और पूरी अर्थव्यवस्था का पहिया घूमने लगेगा। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि भारत की आर्थिक विकास दर में 2018 से ही गिरावट आई है।
अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पहले चार साल के कार्यकाल के दौरान विकास दर ऊंची रही थी। उन्होंने कहा कि फिर से सात फीसदी की विकास दर हासिल करने के लिए भारत को मुक्त व्यापार और बैंकों के फिर से पूंजीकरण की सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत में 6 से 7 फीसदी तक की महंगाई दर को सहन करने की क्षमता है। आरबीआई को इसे कम रखने पर जोर देने की जरूरत नहीं है। अप्रैल से जून 2020 के दौरान महंगाई की ऊंची दर से आपूर्ति में कमी आई थी। आपूर्ति में सुधार होने पर महंगाई घटती चली जाएगी।
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