अधिवक्ता का मूल कार्य न्याय का निष्पादन न की पक्षकार को विजय दिलाना - न्यायमूर्ति शमशेरी


ईस्ट न्यूज ब्यूरो 

अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड द्वारा आयोजित वर्चुअल विधिक बैठक में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के  न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने अधिवक्ता-लोकतंत्र का केन्द्रीय स्तम्भ पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अधिवक्ता न्यायालय का ऑफिसर है और उसका मूल कार्य न्याय का निष्पादन है, न कि एक पक्षकार को विजय दिलाना। 


अधिवक्ता परिषद अधिवक्ताओं का एक ऐसा समहू व शक्ति है जो इन चारों स्तम्भों में समन्वय बनाता है जिससे समाज व न्याय के बीच दूरियाँ कम हो। उच्चतम न्यायालय में उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सीधे उच्चतम न्यायालय में जाया जा सकता है। जब विधायिका कोई कानून बनाती है तो अधिवक्ता समाज को उसपर शोध कर, चिन्तन कर अवगत कराना चाहिए। 

अधिवक्ताओं को न्यायिक कार्य से विरत नहीं रहना चाहिए। अधिवक्ताओं की हड़ताल मुवक्किल का नुकसान  करती है। अच्छा अधिवक्ता अपने वाद के सशक्त और कमजोर पहलुओं का विशेष ध्यान रखता है। अधिवक्ता समाज का एक ऐसा व्यक्तित्व है जो समाज के पीड़ित व्यक्तियों को अपनी आवाज देकर न्याय दिलवाता है। कार्यक्रम के अंत में क्षेत्र मंत्री चरण सिंह त्यागी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

कार्यक्रम का संचालन सर्वेश कुमार शर्मा एडवोकेट, अमरोहा ने किया। सजीव प्रसारण में उत्तर प्रदेश अधिवक्ता परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरोत्तम कुमार गर्ग गोरक्षप्रांत से गौरीशंकर पाण्डेय, महेन्द्र नाथ शुक्ला, अभयन्दन त्रिपाठी, ब्रजेन्द्र सिंह, अरुण पाण्डेय, उदयवीर सिंह, घनश्याम सिंह, बी. डी. सिंह अजीता पाण्डेय आदि उपस्थित रहे।

अधिवक्ता अपने कार्य को पूर्ण तैयारी, कुशलता, सहजता व सरलता के साथ न्यायालय के समक्ष रखता है जिससे उसके मुवक्किल का विश्वास उस पर बना रहे। संविधान में तीन स्तम्भ बताये गए हैं परन्तु वर्तमान में मीडिया चौथे स्तम्भ के रूप में स्थापित हुआ है। अधिवक्ता अपने तर्क से ही विधिसम्मत न्याय दिलाने में सक्षम है। 

न्यायालय को प्रामाणिक और सद्भावनापूर्ण दाखिल जनहित याचिका को प्रोत्साहित करना चाहिए और यही कार्य समस्त अधिवक्ता समाज का भी है। न्याय: मम धर्मः के ऊपर चलकर समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को न्याय दिलाने का कार्य है।

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