- आदमी जैसे प्रकृति के नियम के खिलाफ काम कर रहा है ऐसे ही प्रकृति भी खिलाफ़ चलने लग गई, सजा देने के लिए
- जब से मांसाहार बढ़ा, खून में गर्मी जब से आई तब से मां बहन बहू की पहचान लोगों की आँखों से खत्म हो गई
उज्जैन (मध्य प्रदेश)। ऋषि, मुनि, महात्मा, सन्तों के उपदेशों, आदर्शों को याद दिला कर उन पर चलने की शिक्षा देने वाले, खुशहाली-शांति के लिए नाराज कुदरत को खुश करने का तरीका बताने वाले, सतयुग देखने लायक बनने की शिक्षा देने वाले, इसी कलयुग में सतयुग आने की बात बताने वाले इस समय के सर्व समर्थ पूरे सतगुरु परम पूज्य परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने राठ, हमीरपुर, उत्तर प्रदेश में 19 दिसंबर 2021 को अगहन पूर्णिमा पर दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि ये अगहन की पूर्णिमा है। बहुत से लोग नदियों में स्नान करने के लिए गए होंगे। तीर्थ स्थानों पर आज मेला लगा होगा। जहां पर कभी सन्त महात्मा रहे हैं वहीं पर उनके स्थान बन गए।
उन्होंने जिन देवी-देवताओं को, जिन आराध्य को याद किया उनका भी स्थान लोगों ने बना लिया। तो ज्यादातर नदियों के किनारे ही ये स्थान ऋषि, मुनि, महात्माओं ने बनाया था। पहले लोग जाते थे, नदियों में स्नान करते और ऋषि, मुनि, योगी, योगेश्वर, सन्त के आश्रमों पर जा करके अच्छी-अच्छी बातों को सुनते, मानते और करते थे। सतसंग में गृहस्थ आश्रम में कैसे रहा जाए, भाई, भाई के साथ, पिता-पुत्र के साथ कैसा बर्ताव करें, पति-पत्नी का फर्ज क्या होता है आदि सब वहाँ सीखते थे। और जब घर में आकर के उस तरह से आचरण करते थे तब यही गृहस्थ आश्रम स्वर्ग जैसा था। अब देखो घर-घर में बीमारी, लड़ाई-झगड़ा, ईर्ष्या-द्वेष, वैमनस्यता, एक दूसरे के खून के प्यासे तक हो जा रहे है। संतों के उपदेशों को लोगों ने छोड़ दिया तो शांति नहीं है।
राम-सीता के जैसे आदर्शों का पालन जब करेंगे तब शांति-सुकून मिलेगी, तकलीफ दूर होगी
देखो! पिता के एक हुकुम पर राम राजगद्दी पर ठोकर मार कर जंगल चले गए थे। सीताजी अगर चाहती तो जब उन्हें हनुमान के राम दूत होने का विश्वास होने पर उनके साथ चली आती। जो पहाड़ उठा कर हाथ में ला सकता है वो सीता को हथेली पर बैठा कर ले आता और राम के सामने खड़ा कर देता लेकिन सीता नहीं आई।
एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। कायँ बचन मन पति पद प्रेमा।।
पति के चरण के अलावा और किसी को देखती ही नही थी। तो बच्चीयों आप को ध्यान देने की जरुरत है। राम कथा आपके यहाँ होती होगी। अशोक वाटिका में जा जा कर रावण बहुत समझाने की कोशिश किया-
एक बार बिलोकु मम ओरा।
एक बार मेरी तरफ तुम देख लो। लेकिन सीता अगर बात भी करती थी तो-
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
यानी आंख के सामने तिनका लगाकर के बात करती थी कि उसकी आंखों से आंखें न मिल जाये। तो आप जब उस आदर्श का पालन करोगी तब शांति और सुकून मिलेगा, तकलीफ दूर होगी। उनकी तरह से आप अगर करने लग जाओ तो अभी यह प्रकृति साथ देने लग जाए, समय पर जाड़ा, गर्मी, बरसात होने लग जाये। फिर तकलीफ देने वाली ठंडी हवा, शीतलहर, लू आदि नहीं चलेगी। ये हवा, पानी, सूरज की रोशनी, आग भी आदमी के लिए जरूरी है। पहले सब मौसम अनुकूल था, सूखा-अकाल नहीं पड़ता था, बहुत खुशहाल लोग रहते थे
ज्यादा कोई चीज हो जाती है तो वह नुकसान करती है। बच्चीयों देखो! चूल्हे की आंच कम रखती हो तो रोटी, चावल पक जाता है और तेज करने से जल जाता है। पहले ऐसा विपरीत हाल नहीं था। सब मौसम अनुकूल था। बहुत खुशहाल लोग रहते थे। तपन, जलन, ज्यादा ठंडी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि नहीं होती थी। सूखा-अकाल नहीं पड़ता था। सतयुग में तो एक बार फ़सल लोग बोते थे और 27 बार काटते थे।
अब लोग प्रकृति के खिलाफ चलने लग गए तो प्रकृति सजा देने लग गई
लेकिन अब कोई अगर पानी चाहे तो ओला पत्थर कुदरत दे देती है। गर्मी चाहे तो ठंडी पड़ने लगती है। ठंडी चाहे तो गर्मी बढ़ जाती है। आदमी जैसे इनके नियम के खिलाफ काम कर रहा है ऐसे ही ये भी खिलाफ़ चलने लग गए सजा देने के लिए। पहले सजा यह नहीं देते थे, यह सब आदमी के दोस्त थे। कहते हैं कि कोई दोस्त होता है, वही दुश्मन बन जाता है। जब दोस्त रहता है तो मदद करता है और जब दुश्मन बन जाता है तो जानलेवा हो जाता है। उसी तरह से यह हो गया। जब से मांसाहार बढ़ा, खून में गर्मी आई तब से मां बहन बहू की पहचान आँखों से लोगों की खत्म हो गई। लेकिन पहले के समय में ऐसा नहीं था। लोगों की नीयत सही रहती थी जैसे राम के राज्य में था। उदाहरण देकर मैंने आपको राम का ही बताया कि-
जननी सम जानहि पर नारी। धन पराय विष ते विष भारी।।
दूसरे के धन को जहर और मां-बहन को अपनी मां-बहन की तरह से समझते थे। आज देखो कब किसकी नीयत खराब हो जाए, कोई भरोसा नहीं। जब से शराब, नशीली गोलियों का, नशे की जड़ी-बूटियों का प्रचलन ज्यादा बढ़ा तब से तो अपनी मां बहन बहू को भी पहचान नहीं पाते है। आंखों के सामने पर्दा पड़ जाता है, कालिमा आ जाती है, समझो कि अंधा हो जाता है आदमी। यानी जब से मांसाहार बढ़ा, खून में गर्मी आई तब से यह पहचान लोगों की खत्म हो गई। गलती जब लोगों ने किया तो क्या किस तरह की सजा मिली, इसको आप देखो। नजर-नीयत, खान-पान, चाल-चलन खराब होने की वजह से महाभारत हुई, रावण का विनाश हुआ। तो आप लोग इन सब गलत चीजों से बचो।
सन्त उमाकान्त जी के वचन:
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