जसपुरा। पैलानी तहसील क्षेत्र के कई गांवों में आज मंगलवार की शाम को बच्चीयों ने धूमधाम के साथ महाबुलिया का कार्यक्रम किया। बता दें कि पूरे देश एक ओर जहां पुरुष अपने पितरों का तर्पण करते हैं वही बुंदेलखंड में घर की छोटी-छोटी बच्चियां करती हैं महाबुलिया के रूप में अपने पुरखों का तर्पण। बुंदेलखंड अंचल में प्रचलित महबुलिया एक ऐसी अनूठी परंपरा है, जिसे घर के बुजुर्गों के स्थान पर छोटी बच्चीया बनाते है। समय में बदलाव के साथ हालांकि अब यह परम्परा गांवों तक ही सिमट चली है। बुंदेलखंड में लोक जीवन के विविध रंगों में पितृपक्ष पर पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भी अंदाज जुदा है। पुरखों के तर्पण के लिए यहां पूजन अनुष्ठान श्राद्ध आदि के आयोजनों के अतिरिक्त बालिकाओं की महबुलिया पूजा बेहद खास है। जो नई पीढ़ी को संस्कार सिखाती है। पूजा का भी अपना अलग ही तरीका है। बच्चे कई समूहों में बंटकर इसका आयोजन करते है।
महबुल को एक कांटेदार झाड़ में रंग बिरंगे फूलों और पत्तियों से सजाया जाता है। विधिवत पूजन के उपरांत उक्त सजे हुए झाड़ को बच्चे गाते बजाते हुए गांव के किसी तालाब या पोखर में ले जाते है जहां फूलों को कांटों से अलग कर पानी मे विसर्जित कर दिया जाता है। महबुलिया के विसर्जन के उपरांत वापसी में यह बच्चे राहगीरों को भींगी हुई चने की दाल,गुण और लाई का प्रसाद बांटते हैं। यह प्रसाद सभी बच्चे अपने घरों से अलग-अलग लाते हैं। जसपुरा गांव के बुजुर्ग लक्ष्मी सिंह ने बताया कि महबुलिया को पूरे बुंदेलखंड में बालिकाओं द्वारा उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
हर रोज जब अलग-अलग घरों में महबुलिया पूजा आयोजित होती है तो उसमें घर की एक वृद्ध महिला साथ बैठकर बच्चों को न सिर्फ पूजा के तौर तरीके सिखाती बल्कि पूर्वजों के विषय मे जानकारी देती है। इसमें पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रदर्शन के साथ सृजन का भाव निहित है। झाड़ में फूलों को पूर्वजों के प्रतीक के रूप में सजाया जाता है जिन्हें बाद में जल विसर्जन कराके तर्पण किया जाता है। दूसरे नजरिये से देखा जाए तो महबुलिया बच्चो के जीवन मे रंग भी भरती है। इसके माध्यम से मासूमों में धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार पैदा होते हैं।
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