नई दिल्ली/पीआईवी। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति श्री एम. वेंकैया नायडू ने जोर देकर कहा है कि भारत के संविधान के साथ देश को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने की आवश्यकता है, देश की विधायिकाओं को 'संवाद और बहस' द्वारा चलाया जाना चाहिए और लगातार व्यवधानों के माध्यम से इसे निष्क्रिय या वाधित नहीं रखना चाहिए। उन्होंने राज्यसभा की उत्पादकता में लगातार गिरावट पर चिंता व्यक्त की। नायडू ने आज संसद के सेंट्रल हॉल में 'संविधान दिवस' के अवसर पर बोलते हुए संविधान की भावना, प्रावधानों और इसके वास्तविक अभ्यास के बीच के अंतर पर विस्तार से बात की। यह कहते हुए कि संविधान मूल्यों, विचारों और आदर्शों का एक कथन है और बंधुत्व की सच्ची भावना के साथ सभी के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करने की मांग करता है। यह देश के कानून के तौर पर राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने का एक सशक्त हथियार है ताकि भारत एक समुदाय के रूप में उभर सके। उन्होंने सरदार पटेल को याद करते हुए कहा कि "दूर की बात करें तो यह भूल जाना सभी के हित में होगा कि इस देश में अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक जैसा कुछ भी है। यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत एक समुदाय है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी नागरिकों और हितधारकों को राष्ट्र के लिए जुनून के साथ काम करना चाहिए।
राज्यसभा के सभापति नायडु ने लगातार व्यवधानों के कारण असफल विधायिकाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि पिछले आम चुनावों से एक साल पहले 2018 के दौरान सदन की उत्पादकता सबसे कम 35.75 प्रतिशत पर पहुंच गई थी जो आगे चलकर पिछले 254वें सत्र में 29.60 प्रतिशत तक फिसल गई। उन्होंने आगे कहा कि जहां 1979 से 1994 तक 16 वर्षों में राज्यसभा की वार्षिक उत्पादकता 100 प्रतिशत से अधिक रही है, वहीं अगले 26 वर्षों के दौरान 1998 और 2009 में केवल दो बार ऐसा हुआ है। सभापति ने सभी संबंधितों से विधायिकाओं को इतना निष्क्रिय बनाने के मुद्दे पर विचार करने का आग्रह किया।
यह तर्क देते हुए कि लोकतंत्र में लोगों की इच्छा उस समय की सरकारों को मिले जनादेश के रूप में देखी जाती है, उपराष्ट्रपति श्री नायडु ने जोर देकर कहा कि लोगों के जनादेश के प्रति सहिष्णुता ही विधायिकाओं की मार्गदर्शक भावना होनी चाहिए। नए दृष्टिकोणों के लिए खुलेपन और विविध विचारों को सुनने की इच्छा से चिह्नित संविधान सभा में संवाद और बहस का उल्लेख करते हुए, सभापति श्री नायडु ने चुने हुए प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे खराब प्रतिनिधि या अच्छे प्रतिनिधि बनने के बीच के विकल्प को चुनें जो या तो अच्छे संविधान को भी खराब कर सकते हैं या फिर एक कमजोर संविधान को भी अच्छाई के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने विधेयकों की अपर्याप्त जांच के कारण उत्पन्न व्यवधानों पर चिंता व्यक्त की।
उपराष्ट्रपति नायडू ने महिलाओं के सशक्तिकरण की सराहना करते हुए कहा कि संविधान ने उन्हें एक झटके में वोट देने का अधिकार दिया है, जबकि अमेरिका को ऐसा करने में 144 साल और ब्रिटेन को 100 साल लग गए और महिलाओं को देश के भाग्य को आकार देने में भागीदार के रूप में सक्षम बनाया। यह कहते हुए कि 'समावेश' संविधान का एकमात्र उद्देश्य है, नायडू ने कहा कि यह भावना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के व्यापक दर्शन में प्रतिध्वनित होती है जो "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास" में विश्वास करती है।
यह कहते हुए कि भारत के संविधान ने अब तक व्यापक रूप से अच्छा काम किया है, उन्होंने आपातकाल के दौरान इसकी भावना और दर्शन को नष्ट करने के कुछ दुर्भाग्यपूर्ण प्रयासों का उल्लेख किया, जिसे सौभाग्य से निरस्त कर दिया गया था और कहा, "हम, लोगों ने, बार-बार प्रदर्शित किया है कि हम अब इस खूबसूरत पेड़ को मुरझाने नहीं देंगे"। नायडू ने भारत के संविधान की भावना और प्रावधानों का कड़ाई से पालन करने का आह्वान किया ताकि देश को अगले स्तर तक ले जाया जा सके और राष्ट्रों के समूह में सुशिक्षित भारत, सुरक्षित भारत, स्वस्थ भारत, आत्मनिर्भर भारत और अंतत: एक भारत, श्रेष्ठ भारत के रूप में अपना सही स्थान हासिल किया जा सके।
It has been our firm belief that people are at the centre of our development architecture.
They are the agents of the transformation of our country.
Their empowerment is the goal of all our efforts.
Their aspirations steer our policies.
Their strengths drive our growth.— Vice President of India (@VPSecretariat) November 26, 2021
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