इसी नवरात्र में ही बाहर की बजाय अंतर की सच्ची पूजा कर अपनी जीवात्मा को अपने घर पहुंचा दो : बाबा उमाकान्त जी महाराज

  • दुनिया की चीज शरीर के साथ खत्म हो जाएगी इसलिए गुरु से असली चीज मांगो

विशेष संवाददाता

उज्जैन आश्रम, मध्य प्रदेश। त्योहार का असली अर्थ बताने वाले, बाहरी पूजा अर्चना से आगे बढ़कर अंतर की असली पूजा करने का सही तरीका बताने वाले, आध्यात्मिक धन लुटाने वाले इस समय के मौजूदा पूरे सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 17 अक्टूबर 2020 को उज्जैन आश्रम से दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि यह नवरात्र का धर्म-कर्म करने का नियम हिंदू धर्म के अनुसार लोगों ने बना दिया कि इसमें विशेष लाभ मिलेगा। तो आप सतसंगियों को भी इसमें विशेष लाभ लेना चाहिए। जैसे दुनिया वाले अपने नियम से करते हैं।

ऐसे ही आप भी अपना पक्का नियम सुमिरन-ध्यान-भजन का बनाओ। जैसे कीर्तन, हवन, अनुष्ठान, यज्ञ होता है ऐसे आप सब लोगों को भी उसी तरह से ज्यादा समय निकालना चाहिए। जैसे निश्चित किया गया कि इतवार, मंगलवार को मंदिर जाना, शुक्रवार को नमाज पढ़ना आदि तो ऐसे आप भी अपना नियम बनाओ कि इसमें हमको भजन-ध्यान ज्यादा करना है। अब तो आप पर कोई बंधन नहीं कि कहीं जाना हो, हाथ-पैर, नहाना-धोना जरूरी हो या प्रसाद चढ़ाकर ही देवता को खुश करना है, ऐसा कुछ नहीं।

बराबर नौ दिन का उपयोग परमार्थ कमाने में होना चाहिए

जहां भी समय मिले आप आख बंद करो, ध्यान लगाओ; कान बंद कर भजन करो। मन न लगे तो नाम ध्वनि बोलने लग जाओ, प्रार्थना ही बोलने लग जाओ। अपना साथी बना लो। कोई भी कैसा भी हो, उससे बोलो चलो प्रभु का नाम लिया जाए। यकीन-विश्वास करो, जय गुरु देव नाम खुदा गॉड भगवान परमात्मा का ही नाम है। आप कहीं नहीं जा पा रहे हो, रात में ड्यूटी पर हो तो नाम ध्वनि ही बोल लो। तो बराबर नौ दिन का उपयोग परमार्थ में होना चाहिए।

इसी नवरात्र में ही अपनी जीवात्मा को निज घर पहुंचा दो

असली परमार्थ तो आत्मा के उद्धार का ही है। जीवात्मा को परमात्मा तक पहुंचाना, उस समुंदर में पहुंचाना जिसकी यह बूंद है, असला परमार्थ तो वह है। परमार्थ का अर्थ समझो। परम यानी सबसे ऊंचा स्थान है परम पुरुष का। इस जीवात्मा को वहां नवरात्र में ही पहुंचाओ। वहां का आनंद भी आप ले लो।

जैसे दुनिया के बहुत आनंद अभी तक लिए, अब अपनी भूखी-प्यासी जीवात्मा को भी तो सुख, शांति, आनंद दो

अभी तक जीवन में बहुत सा आनंद आपने मन के कहने पर लिया, देखा, सुना, बोला, हर तरह का समय परिस्थिति उम्र के अनुसार आनंद लिया लेकिन जो आत्मा को आपके आनंद नहीं मिला, खुराक नहीं मिला, वह भी तो बराबर तड़प रही, रो रही है। उसको भी तो शांत करो, संतुष्ट करो। जीवात्मा में जो तीसरी आंख है, उससे अपना निज लोक दिखाओ, धाम दिखाओ।

आपका असला काम कैसे होगा

आप सब नवरात्र में संकल्प करो, गुरु महाराज से दया मांगो कि हमारे ऊपर आप दया कर दो। दया सिंधु हो, दया के सागर हो, बहुत से लोगों पर दया करते हो, आपको हम याद करते हैं, प्रार्थना करते हैं। आप सुनवाई करते हो, हमारी बीमारी-तकलीफ, आर्थिक परेशानी दूर करते हो। जिस तरह से आप भौतिक चीजों पर दया कर रहे हो, धन-दौलत, पुत्र-परिवार पर जैसे आप दया कर रहे हो, उसी तरह से हमारी आत्मा पर भी आप दया कर दो। अगर दया हो गई तो वो दया और ताकत इस शरीर के अंदर जब तक जीवात्मा रहेगी तब तक बना रहेगा। उसके बाद शरीर छूटने के बाद भी वह ताकत, शक्ति कम नहीं होगी।

दुनिया की चीज शरीर के साथ खत्म हो जाएगी इसलिए असली चीज मांगो

आप गुरु से दुनिया को मांगते हो, गुरु देते भी हैं। दुनिया जाने वाली है। पापी पेट के लिए, शरीर के मान-सम्मान-इज्जत के लिए जो कुछ चाहते हो, सब यहीं छूट जाएगा। जब तक शरीर है तब तक यह चीजें हैं और तब तक ही इनकी कीमत हैं। इसलिये असली चीज को पकड़ो।

सन्त उमाकान्त जी के वचन

प्रभु, गुरु तथा मौत को हमेशा याद रखो। सच्चे गुरु के मिल जाने पर इसी मनुष्य शरीर में भगवान का दर्शन होता है; अनहद, आकाशवाणी सुनाई पड़ती है। मनुष्य शरीर गुनाह करने के लिए नहीं बल्कि भगवान के भजन के लिए मिला है। मृत्यु के बाद शरीर का मुक्ति-मोक्ष श्मशान घाट पर तो हो जाता है परंतु उपाय न करने पर जीवात्मा फंस जाती है। सन्त मानव धर्म सिखाते हैं।

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