सन्त धरती पर आते, लोगों को समझाते, सुख-शांति और मुक्ति-मोक्ष का रास्ता भी बताते हैं, जो विश्वास करता उनको मिलता फायदा : बाबा उमाकान्त जी


  • सन्तों के जाने के बाद लोग बाहरी जानकारी लेते हैं लेकिन आध्यात्मिक दौलत को समझ नहीं पाते
  • वक्त के सतगुरु को खोज तेरे भले की कहूं

इंदौर (मध्य प्रदेश)। विश्वविख्यात बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी इस समय के मौजूदा पूरे सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 29 मार्च 2022 को इंदौर आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि आप जिस चीज को भूल रहे हो उस चीज को आज हमको याद कराना है। आप शरीर, पेट के लिए दिन-रात चलते रहते हो। यही समझ लिए खाओ-पियो, मौज-मस्ती करो इसीलिए मनुष्य शरीर मिला, फिर दोबारा नहीं मिलने वाला। यह मस्ती आनंद सुख सब बेकार है। इस सुख की अपेक्षा जिसको आत्म सुख, आत्म आनंद कहा गया, वह आनंद शांति, सुख कहां छुपा हुआ है? इसी शरीर के अंदर, इसी में आपको मिलेगा। कब मिलेगा? जब कोई जानकार समरथ गुरु मिल जाता है तब क्योंकि जानकार गुरु ही रास्ता बताते हैं।

जानकार सन्त ही रास्ता बताते हैं चाहे सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग कोई भी युग हो

समरथ गुरु हमेशा ही धरती पर रहते हैं चाहे सतयुग, त्रेता, द्वापर,कलयुग आया हो। यह कई बार आए और गए। जब से धरती आसमान संसार बना, कोई भी युग रहा हो, हर युग में गुरु रहे हैं। जब जैसे जिस तरह की जरूरत पड़ी उस तरह का रास्ता बताए हैं। जब ज्यादा मर्ज बढ़ जाता है तो तेज दवा की जरूरत पड़ती है, ऐसे समय-समय पर यह आते रहे हैं, यह धरती कभी भी खाली नहीं रही है संतो से।

घिरी बदरिया पाप की बरस रहे अंगार।
 सन्त न होते जगत में तो जल मरता संसार।।

सन्त इस धरती पर आते हैं लोगों को चेताते, बताते, समझाते हैं और सुख-शांति का, मुक्ति-मोक्ष का रास्ता भी बताते हैं। जो विश्वास के साथ लग जाते हैं उनको फायदा हो जाता है।

अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष सब बंद मुट्ठी में लेकर आता है बच्चा

वह तो रोते-रोते पैदा हुए हैं और रोते-रोते जिंदगी खत्म कर लिया। कहते हैं न मुट्ठी बांध कर आए हो हाथ पसार कर चले जाओगे। मुठ्ठी में अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष सब कुछ लेकर आए हो। सब कुछ मिलता है इसी शरीर में। मुट्ठी में लेकर आए हो लेकिन सब कुछ यही छोड़कर चले जाओगे।

सन्तों के जाने के बाद लोग बाहरी जानकारी लेते हैं लेकिन आध्यात्मिक दौलत को समझ नहीं पाते

जो वक्त सतगुरु के बताये रास्ते पर लग जाते हैं उनको तो फायदा मिल जाता है। जब सन्त चले जाते हैं जो संतों के साथ लगे हुए रहते हैं वह उनकी महिमा को गाते रहते, जगह-जगह पर उनके नाम का मंदिर समाधि बना लेते हैं, पूजा करने लग जाते हैं, महिमा को गाने लग जाते हैं। तब आने वाली पीढ़ी उनकी तरफ आकर्षित होती जाती है लेकिन वह केवल नाम, स्थान ही जान पाते हैं लेकिन वह कौन सी दौलत देकर के गए, क्या बता कर के गए कि जिससे प्रचार कर रहे हैं लोग, वह प्रसिद्ध हो रहे हैं, इस चीज को नहीं समझ पाते हैं। इसीलिए तो कहा गया 'वक्त के गुरु को खोज तेरे भले की कहू' तो वक्त गुरु को खोजना चाहिए।

गुजरे हुए डॉक्टर, मास्टर से लाभ नहीं ले सकते

कोई कहे जो डॉक्टर, मास्टर हमारे पिताजी को ठीक किए, पढ़ाये, अफसर बनाये, वह मर गए चले गए। अब उनसे इलाज करा कर, पढ़ कर हम ठीक हो जाएंगे, अफसर बन जाएंगे तो आप नहीं बन सकते। वक्त के मास्टर डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। जब रास्ता बताने वाले मिल जाते हैं तो रास्ता तय हो जाता है।

सन्त उमाकान्त जी के वचन

परमात्मा सन्तों को अच्छे-बुरे की पहचान एवं कुदरत के नियम-कानून बताने के लिए भेजते हैं। अज्ञान-अनजान व्यक्तियों को चेताने के लिए भविष्य के भयंकर परिणामों को खुल कर बताना पड़ता है। मानव का फर्ज बनता है कि जिस देश में रहे, उस देश के प्रति अपने हृदय में देशभक्ति रखे।धरती तेज चलती है इसलिए धरती पर परिवर्तन जल्दी होता दिखाई पड़ता। कुदरत के नियम-कानून को देखा, पढ़ा एवं सुना जा सकता है।

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