विशेष संवाददाता
पचपेड़वा, बलरामपुर। छात्र छात्राओं के चतुर्मुखी विकास व बौद्धिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए ये ज़रूरी है कि वो राष्ट्रनायकों, युग पुरुषों के जीवन और उनके संघर्षों से परिचित हों, वो उनके सिद्धांतों, एवं आदर्शों को आत्मसात करके सफलता के नए नए कीर्तिमान बना सकते हैं। इसी उद्देश्य के तहत बलरामपुर जिले के पचपेड़वा स्थित जे.एस. आई. स्कूल में हर शनिवार को एक "ज़रा याद उन्हें भी कर लो" प्रोग्राम की शुरुआत की गई है। जिसके तहत युग पुरुषों और महानायकों के जीवन से बच्चों को रूबरू कराया जाता है।
इस शनिवार 07 मई को श्रृंखला की 11वीं कड़ी में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के जीवन से छात्र छात्राओं को रूबरू कराया गया। क्षेत्र के लोकप्रिय चिकित्सक व अपने सामाजिक कार्यों के ज़रिये अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले डॉ ग्यासुद्दीन खान ने बतौर मुख्यातिथि बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि आंइस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जमर्नी में एक साधारण परिवार में हुआ था। फिर वो स्विट्जरलैंड में रहे और उनका निधन अमेरिका में हुआ। उन्हें फ़ोटो इलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट की खोज के लिए 1921 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। इसके अलावा "सापेक्षता का सिद्धांत", द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण के लिए भी जाना जाता है। उनके तीन सौ ज़्यादा शोधपत्र प्रकाशित हुए।
यही नहीं खुशहाल जीवन के बारे में लिखे गए उनके नोट्स दस करोड़ तेईस लाख में येरुशलम में बिके। ये नोट उन्होंने टोक्यो में एक वेटर को टिप्स में दिए थे। जब वो वहां एक लेक्चर देने गए थे। नोट्स में लिखा था "जीवन में मंज़िल हासिल करने के बाद भी खुशी मिल जाये इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसके अलावा नोट्स में ये भी लिखा था "जहां चाह वहां राह"ये नोट भी दो करोड़ रुपये में बिका था।
संस्था के प्रबंधक व पत्रकार सगीर ए ख़ाकसार ने कहा कि वो भौतिकविद व गणितज्ञ थे। उनका दिमाग सामान्य इंसानों की मस्तिष्क से हटकर था। उनके निधन के बाद उनका दिमाग अध्ययन के लिए संरक्षित किया गया। कई शोध किये गए। फ्लोरिडा के म्यूजियम के स्थायी गैलरी में प्रदर्शन के लिए रखा गया है, जिसे माइक्रोस्कोप की सहायता से देखा जा सकता है। दुनिया के इस महान वैज्ञानिक का 18 अप्रैल 1955 में अमेरिका में निधन हो गया।आइन्स्टीन से जुड़े रोचक प्रसंगों से बच्चे अभिभूत हो गए।
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