‘द ग्रेट गामा’ ने दुनिया के तमाम पहलवानों को चटाई थी धूल

गामा पहलवान

  • दारा सिंह से भी पहले ‘रुस्तम-ए-हिन्द’ का खिताब अपने नाम कर चुके थे  

महेश मिश्रा, एडिटर

आज के दौर में हर कोई बॉडी बनाना चाहता है। इसके लिए घंटों जिम में पसीना बहाता है। कई तरह के पाउडर और प्रोटीन खाकर सेहत बनाते है तो लेकिन उतना मजबूत नही होता है जितना होना चाहिए। आज हम ऐसे शख्स की बात करने जा रहें है जिनका नाम तो सुने होंगे। लेकिन सही से उनके बारे में जाना नहीं होगा। भारत में एक शख्स ऐसा भी रहा है जिसने अपनी लगन, जज्बे और कड़ी मेहनत से दुनिया के तमाम पहलवानों को धूल चटाई थी और उसे हराने वाला कभी पैदा नहीं हुआ। अगर हम आपको गुलाम मुहम्मद बक्श बट्ट का नाम बताएं तो मुमकिन है कि आप उन्हें नहीं पहचान पाएंगे लेकिन अगर हम बात करें ‘द ग्रेट गामा’ यानी ‘गामा पहलवान’ की तो जरूर आपने अपनी जिंदगी में उनका नाम सुना होगा। 

इसे पढ़ें : सात मुख्य खबरों को पढ़ें मात्र पांच मिनट में 

आपको बता दें कि गामा पहलवान का वास्तविक नाम ग़ुलाम मुहम्मद बख्श था। दुनिया में अजेय गामा पहलवान का जन्म 22 मई 1878 ई० को पंजाब के कपूरथला जिले के जब्बोवाल गांव में हुआ था। हालांकि इनके जन्म को लेकर विवाद है। इनके बचपन का नाम ग़ुलाम मुहम्मद था। इन्होंने 10 वर्ष की उम्र में ही पहलवानी शुरू कर दी थी। इन्होंने पत्थर के डम्बल से अपनी बॉडी बनाई थी। द ग्रेट गामा वो शख्स हैं जो दारा सिंह से भी पहले ‘रुस्तम-ए-हिन्द’ का खिताब अपने नाम कर चुके थे। यही नहीं, वो वर्ल्ड चैंपियन भी बने थे और उन्होंने बड़े-बड़े दिग्गजों को प्रेरित किया था।

पिता ने बोया था बेटे के मन में पहलवान बनने का बीज

गामा पहलवान एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार से आते थे और उनके पिता मुहम्मद अजीज बक्श दतिया के महाराजा भवानी सिंह के दरबार में कुश्ती लड़ा करते थे। अजीज दक्षिण भारतीय रेस्लिंग कुश्ती धुरंदर पहलवान थे। जब गामा पहलवान छह साल के थे तब पिता की मौत हो गई थी, लेकिन तबतक उन्होंने अपने बेटे के अंदर कुश्ती की अलख जगा दी थी। गामा पहलवान के नाना नून पहलवान ने उन्हें और उनके भाई को पहलवानी सिखाने का जिम्मा उठाया। फिर गामा पहलवान के मामा ईदा पहलवान ने उन्हें कुश्ती के पैंतरे सिखाए। 

इसे पढ़ें : टॉप-5 खबरों को पढ़ें फटाफट 

हर दिन 3000 बैठक और 1500 दंड किया करते थे

बचपन के दौर से ही गामा का नाम भारत में होने लगा और वो रोज 15 घंटे प्रैक्टिस करते थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि वो हर दिन 3000 बैठक और 1500 दंड किया करते थे। इसके अलावा वो रोज अपने गले से 54 किलो का पत्थर बांधकर एक किलोमीटर तक भागा करते थे। यही नहीं, बताया जाता है कि गामा पहलवान की खुराक एक समय में पांच किलो दूध व उसके साथ सवा किलो बादाम थी। दूध 10 किलो उबाल कर पांच किलो किया जाता था। इन सब का खर्चा तत्कालीन राजा भवानी सिंह द्वारा उठाया जाता था और अपने पिता की तरह गामा भी दतिया के महाराजा के दराबर में पहलवान बन गए। 

रुस्तम-ए-हिन्द से लेकर विश्व चैंपियन बने थे गामा

इंग्लैंड में उन्होंने पोलैंड के रहने वाले नाम के शख्स को कुश्ती में भी हराया जो उस वक्त विश्व चैंपियन थे. उसे हराकर जब वो भारत लौटे तो उन्होंने नेशनल चैंपियन रहीम को भी मात दी जिसका कद 6 फीट 9 इंच था जबकि गामा सिर्फ 5 फीट 8 इंच के थे. तब उन्हें रुस्तम-ए-हिन्द का खिताब मिला था। 

आखिरी दिनों में वो किस कारण से पैसों की कमी के साथ गुजारा करते थे

बंटवारे के वक्त गामा पहलवान पाकिस्तान में ही रह गए मगर उन्होंने उस वक्त की हिंसा में कई हिंदू परिवारों की जान बचाई थी। पाकिस्तान की सरकार ने उनका ध्यान नहीं रखा और जीवन के आखिरी दिनों में वो पैसों की कमी के साथ गुजारा करते थे। 82 साल की उम्र में उनकी मौत साल 1960 में हुई मगर आज भी भारत और पाकिस्तान में उनका नाम का डंका गूंजता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि महान मार्शल आर्टिस्ट और एक्टर ब्रूस ली भी गामा पहलावन से प्रेरित होकर अपनी एक्सरसाइज में दंड बैठक को शामिल कर लिया था।

गामा पहलवान ने कितने किलो का पत्थर उठाया था?

गामा पहलवान ने वर्ष 1902 में बड़ौदा में 1200 किलो का एक पत्थर उठाया था और वह इसको उठा कर कुछ दुरी तक चले भी थे। अब इस पत्थर को बड़ौदा के संग्रहालय में रखा गया है।

अन्य खबरों को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं -

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ