केवल खाने-पीने, ऐश-आराम में जीवन बिताने पर मृत्यु के बाद जीवात्मा को कर्मों के अनुसार नरकों में जाकर यातनाएं भोगनी पड़ती हैं
केवल भौतिक वस्तुओं और इस दुनियादारी में ही अपने अनमोल मानव जीवन का सारा समय खर्च करने और अपनी जीवात्मा के लिए कुछ न कर पाने वाले मनुष्य को समय रहते समझाने-चेताने वाले, जीते जी प्रभु प्राप्ति का रास्ता नामदान बताने वाले इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बुद्ध पूर्णिमा 15 मई 2022 सायंकाल को उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जीवों की भलाई के लिए सन्तों ने तरह-तरह से सुनाया, समझाया, किस्सा-कहानी, दृष्टांत आदि देकर हर तरह से समझाया। हर दृष्टांत का कोई न कोई मतलब होता है।
विवेकशील राजा का दृष्टांत
एक बार नदी के पास एक बड़ा राज्य था। प्रजा सुखी थी क्योंकि राजा में धार्मिक भावना रहती थी, क्रिया-कलाप, नीयत अच्छी रहती थी तो लोगों को बरकत मिलती थी, धन-दौलत की कमी नहीं होती थी, खुशहाली थी। उस राज्य का एक नियम था कि राजा को एक साल के लिए गद्दी दी जाती थी, उसके बाद प्रजा, राजा को नदी के उस पार बड़े जंगल में छोड़ देती थी। जंगल के हिंसक जंगली जानवर राजा को मार कर खा जाते थे। फिर प्रजा में से ही जिसे प्रजा उपयुक्त समझती, उसे ही राजा बना देती थी। ऐसे ही एक व्यक्ति शान-शौकत, ऐश-आराम की जगह पहुंचा यानी राजा बना लेकिन उसे मौत याद आ गयी कि ये थोड़े समय के लिए गद्दी मिली है।
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366वें दिन मेरी अकाल मृत्यु होगी और नदी पार के जानवर मेरी हीरा जैसी काया को नोच-नोच कर खाएंगे। गिद्ध-कौवा बचे टुकड़ों को खाएंगे। तो उसे चिंता फिक्र हो गई। आज हमको-आपको चिंता ही तो नहीं है कि हमको भी शरीर छोड़ना पड़ेगा और हमारी आत्मा नरकों में जाएगी, 84 में भटकेगी। राजा को फिक्र हुई कि कैसे बचा जाए। तो पारिवारिक संस्कारों का असर पड़ता है। जैसे जिन देवी-देवताओं को घर वाले मानते हैं, बच्चे भी उसी को मानने लगते हैं। सही बात तो यह है कि जिसको लोग आज भगवान मान लेते हैं, वह भगवान नहीं है।
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भगवान में तो ताकत शक्ति होती है लेकिन जिनको लोग भगवान मान रहे पेड़ पौधा पत्थर मिट्टी इन में ताकत बहुत मामूली है। मनुष्य से कई गुना कम ताकत उनमें होती है। जिनमें ज्यादा ताकत हो उन्हीं की तो पूजा हो सकती है, उन्हीं को तो माना-जाना जा सकता है, उन्ही को तो खुश किया जाता है। तो याद तो किया, भावना अच्छी रहती है या कर्म अच्छे रहते हैं तो उसका भी लाभ मिलता है। तो राजा अच्छा कर्म करने लगा। उसकी भावना अच्छी थी। तो एक दिन मन में आया कि चल करके नदी पार देखा जाए कि क्या हाल हुआ पिछले राजाओं का। गया, देखा कि किसी के पैर की हड्डी, किसी की खोपड़ी, कंकाल आदि पड़ा हुआ है। सोचता रहा। तो कहते हैं जब प्रभु को याद करते हैं तो तार उधर जुड़ता है।
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अब या तो तार जोड़ने का तरीका मालूम हो या पूरी निराशा में तड़प से उसे पुकारे तब वो मददगार हो जाता है। किसी न किसी रूप में वो सामने आ जाता है। कोई न कोई विकल्प निकल आता है। तो राजा के दिमाग में बात आ गयी। प्रजा से पूछा-मेरा कहना मानोगे? बोले केवल एक साल तक। राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि प्रजा को लेकर नदी के पार जाओ, जंगल कटवा दो, राजमहल, बगीचा, खेती, व्यापार, कल-कारखाने, दुकानें, उनमें आदमी आदि सब सेट कर दो। अपने सच्चे ईमानदार मित्र को वहां की जिम्मेदारी सौंप दी। काम जल्दी पूरा हो गया। देख कर उसे निश्चिंतता हो गयी। एक साल बाद राजा फिर से नदी के पार जाकर राज करने लग गया।
इस दृष्टांत से क्या शिक्षा मिलती है
इसी प्रकार ये मानव जीवन नगर की तरह से, इसमें बैठी जीवात्मा राजा की तरह से है। इस मनुष्य शरीर का मतलब यदि आप नहीं समझोगे और खाने-पीने, ऐश-आराम में ही इसको लगाए रखोगे तो उस विवेकशील राजा के पहले के राजाओं की तरह इस जीवात्मा की दुर्गति होगी। समय पूरा होने पर इसे नरकों में जाना पड़ेगा और कर्मों के अनुसार उसमें सजा भोगनी पड़ती है। इसलिए जीवित मनुष्य शरीर में मौजूद पूरे सन्त सतगुरु की खोज करो और उनसे जीवात्मा के कल्याण का रास्ता (नामदान) लेकर अंदर की कमाई कर अपने मनुष्य शरीर पाने का उद्देश्य पूरा कर लो।
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