- स्कूल में बच्चों के समान टाइम टेबल बना लोगे तो सब सेट हो जाएगा, सबके लिए टाइम निकल आएगा
- आप कितने भी बिजी हो, खाने, नहाने, लेट्रिन जाने के समान अपनी आत्मा के कल्याण के लिए भी समय निकालो
ऐसे समर्थ महापुरुष जिनके दर्शन करने, सतसंग सुनने, अपनी बात कह देने तथा उनके बताए रास्ते पर चलने से बहुत लोगों को हर तरह की तकलीफों में लाभ मिल जाता है, कोई भी आजमाइश करके देख सकता हैं, ऐसे वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 5 अगस्त 2022 प्रातः कालीन बेला में कोटा (राजस्थान) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गर्भ में जब उल्टे टँगे थे तब जो वादा प्रभु से किया था उसे याद करो।
अब प्रभु कृपा करो यही भाँति। सब तजि भजन करहु दिन राती।।
हे प्रभु! (गर्भ से बाहर निकलकर) मैं दिन-रात भजन करूंगा, मेरे ऊपर कृपा दया करो। सब लोगों ने वादा किया था, उस वादे को याद करना चाहिए। आप कहोगे हमको गृहस्थी देखना है, इसी काम में लगेंगे तो दुकान बंद हो जाएगी, खेती कैसे होगी? हर आदमी को रात दिन कुल मिला करके 24 घंटे का समय मिला है। इसका अगर टाइम टेबल बना लिया जाए तो समय बेकार नहीं जाता है, सब सेट हो जाता है।
जैसे स्कूल में बच्चा टाइम टेबल बनाता है ऐसे ही आत्मा के कल्याण के लिए आप भी बनाओ
जैसे बच्चा होता है, हिंदी इतनी, अंग्रेजी इतनी, भूगोल इतनी देर पढ़ेंगे। जैसे स्कूल में घंटा लगता है इसी तरह से घर में अगर टाइम टेबल बना लिया जाए तो जीवन का समय जो जीने के लिए मिला है, यह बेकार नहीं जाएगा। नहीं तो आदमी ऐसे ही हंसी ठिठोली में, बेकार बैठकर अपने जीवन का समय निकाल देता है। सबको निश्चित समय से ही शरीर को खाली कर देना पड़ेगा। जब जीवात्मा शरीर से निकल जाएगी तब इसकी कोई कीमत नहीं रह जाएगी। इस समय इसकी बहुत बड़ी कीमत है, इसके लिए देवता तरसते रहते हैं।
नर समान नहीं कौनहु देहि। जीव चराचर याचक तेहि।।
जितने भी चर-अचर के जीव हैं, कहते रहते हैं, थोड़े समय के लिए हमको यह मनुष्य शरीर मिल जाए तो हम अपना काम बना लें। अपना काम क्या है? जीवात्मा को परमात्मा तक पहुंचा देना, जन्मने और मरने की पीड़ा से छुटकारा ले लेना। गृहस्थ आश्रम में कुछ-कुछ, लड़ाई-झगड़ा हो रहा, बीमारियां लगी हुई, परेशानी आ रही हैं इनसे छुटकारा ले लेना, यह है अपना काम। यह समय निकल जाएगा। इसी में टाइम टेबल बनाना चाहिए।
कितना भी बिजी हो इंसान, खाना नहाना लैट्रिन के लिए समय निकलता है ऐसे ही आत्मा को तफलीफों से बचाने के लिये समय निकालो
देखो आप कोई भी कितना भी बिजी रहते हो खेती दुकान दफ्तर के काम में लेकिन समय सबके पास रहता है। जैसे मौका निकाल कर भोजन, लैट्रिंग, नहा लेते हो ऐसे ही अपनी आत्मा को जगाने के लिए मालिक के पास पहुंचाने के लिए तकलीफों से छुटकारा पाने के लिए समय निकालने की जरूरत है।
24 घंटे में से 22 घंटा आपके लिए पर्याप्त है, 2 घंटा समय अपनी आत्मा के लिए निकालो
देखो शरीर के पालन-पोषण के लिए भोजन कपड़े का इंतजाम कर लो, रहने के लिए घर बना लो, मान प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए अच्छा काम कर सब मेहनत ईमानदारी से कर लो। आप रहो गृहस्थ आश्रम में लेकिन इन चीजों के लिए 24 घंटे में से 22 घंटे का समय आपके लिए बहुत है। और अगर आप टाइम टेबल जीवन का बना लो तो उससे भी कम समय में यह सारा काम आप कर सकते हो, हो जाता है।
जिस तरफ जब जिसकी लगन लग जाती है तो समय अपने आप निकल आता है
देखो उसी काम को आदमी धीरे-धीरे करता रहता है और जब कोई जिम्मेदारी आ जाती है कि हमको ट्रैन, मुकदमा, लैट्रिन जाना, खाना खाना है तो जल्दी और ज्यादा काम हो जाता है। और जब लगन लग जाती है कि हमको सतसंग में जाना ही जाना है, भजन पूजन करना है, सतसंगियों के पास उठना-बैठना है, हर चीज को सीखना है तो उसका समय निकल आता है।
आदमी के नीयत में जब खोट आती है तो बरकत बंद हो जाती है
देखो आप बहुत मेहनत करते हो लेकिन पूरा नहीं पड़ता है। उसका यही कारण है कि जैसी नीयत वैसी बरकत होती है। नीयत जब खोटी हो जाती है तो बरकत बंद हो जाती है। मेहनत और ईमानदारी को आदमी जब भूल जाता है, बरकत बंद हो जाती है तो परेशानी आ जाती है तो कहते हो हम नहीं करेंगे तो पूरा ही नहीं होगा। उस मालिक को भूल जाते हो जो पैदा होने के पहले मां के स्तन में दूध भर देता है, देता वो है, खिलाता वो है, उसी को भूल जाते हो। देखो मोटी बात समझो 22 घंटा शरीर के लिए करो और 2 घंटा जो मैं तरीका सच्चा भजन पूजन का जीवात्मा के कल्याण के लिए बताउंगा उसे करोगे, जिसको नामदान मिल गया भजन, ध्यान, सुमिरन में जब लग जाओगे तो (जीवन के बाकी) उन कामों में आसानी हो जाएगी। लोग कहने लगते हैं कि भाई ये जहां हाथ डालते हैं वहीं कामयाब हो जाते हैं।
सावन के महीने में परमात्मा की अंश जीवात्मा को निर्मल और उनके जैसा बनाओ
- गोस्वामी जी ने कहा निर्मल मन वाले हमें बहुत प्रिय होते हैं, उन्हें पूरी दया पूरा प्रेम मिलता है
प्रभु को प्राप्त करने, उन्हें खुश करने, उनकी पूरी दया प्राप्त करने का सभी के लिए सुलभ तरीका बताने समझाने वाले, धार्मिक ग्रंथों में लिखी बातों के मर्म को समझाने वाले जिससे उन्हें केवल रटा न जाये बल्कि उनसे पूरा फायदा जीवों को मिले, प्रकृति द्वारा मनुष्य को समय-समय पर दी जाने वाली प्रेरणा व इशारे को खुलकर समझाने वाले, भौतिक और आध्यात्मिक तरक्की की अगली सीढ़ी पर चढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने वाले वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 5 अगस्त 2022 प्रातः कालीन बेला में कोटा (राजस्थान) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सावन का महीना धार्मिक महीना कहलाता है। इसमें ज्यादातर लोग पूजा-पाठ, तमाम धार्मिक अनुष्ठान करते, तीर्थों में दर्शन के लिए जाते हैं लेकिन सावन का मतलब क्या होता है? सा वन। यानी जैसे थे वैसा बन। कैसे थे?
सावन का महीना याद दिलाता है कि सा वन यानी जैसे थे वैसा बन
सभी लोग स्त्री पुरुष एक दिन मां के पेट में थे। नौ महीना रहने के बाद जन्म हुआ था। जब बाहर निकले तो शरीर आवरण गंदगी रहित था। मां के पेट की गंदगी जो थोड़ी बहुत लगी थी वही शरीर में लगी थी। सफाई करने के बाद ये मैल बाद में आया। जैसे थे वैसे बन, सावन का महीना क्या याद दिलाता है? कि आप पहले निर्मल स्वच्छ साफ थे अब वैसे बनो।
गोस्वामी जी ने कहा जो निर्मल मन होते हैं वह हमको बहुत प्रिय होते हैं
देखो बच्चा जब पैदा होता है तब उसको कोई छल कपट धोखाधड़ी जाल फरेब करना बेईमानी चोरी हिंसा हत्या करना नहीं आता है। बच्चा एकदम से निर्मल रहता है। कहा गया है निर्मलता जब तक नहीं आती है तब तक वह प्रभु रीझता नहीं है चाहे कितना भी पूजा पाठ अनुष्ठान किया जाए। वह रीझता, खुश कब होता है? दया कब करता है? कहा गया है-
निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहे कपट छल छिद्र न भावा।।
गोस्वामी महाराज जी ने कहा निर्मल मन जो होते हैं वह हमको बहुत प्रिय होते हैं, हम उनसे बहुत प्रेम करते हैं, उन पर हमारी पूरी दया रहती है।
सावन का महीना मन निर्मल करने का हर साल आता है
जैसे शरीर निर्मल था, मन को निर्मल करने का महीना हर साल आता है। परमात्मा की अंश जीवात्मा जो इस शरीर को चलाती है, इसको उसी तरह से निर्मल बना देना है कि यह प्रभु के पास आराम से पहुंच जाए, चली जाय।
बाबा उमाकान्त जी महाराज के वचन- 10 जुलाई 2022, गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम जयपुर
मन को विषय वासनाओं में फंसाए रखोगे तो पार नहीं हो सकते हो। इच्छाओं पर अंकुश नहीं लगता है तो बुद्धि काम नहीं करती है। यह मन पकड़ में तब आएगा जब गुरु से प्रीत करोगे। भजन में 2 घंटा समय निकालो।लोगों को इकट्ठा करके समझा करके ध्यान भजन करो और करवाओ। भजनानंदी को खान-पान का ध्यान रखना चाहिए, कैसा अन्न है कहां से आया, उसका असर तुरंत आता है। गुरु की दया अमृत की तरह काम करती है। दसवां अंश समय का और मेहनत की कमाई का निकालने का संकल्प बनाओ। मन चित्त बुद्धि की डोरी जब गुरु के हाथ में पकड़ा देते हैं तो बुद्धि काम करने लगती है। रूखी रोटी अगर 6 महीने खा लो तो रोग रहित हो जाओगे।
जीवों की भलाई और संगत की सेवा में लगोगे तो भजन में थोड़े कच्चे भी रहोगे तो भी पार हो जाओगे
- सेवा, भजन करवाकर अच्छे कर्मों को जमा कराया जा रहा है ताकि बुरे समय में आपकी हो सके रक्षा
- जीवों को जगाने, प्रचार-प्रसार, नाम ध्वनि करने कराने आदि बहुत काम है, खाली मत बैठो, समय निकला जा रहा है
किसी न किसी तरीके से बुरे कर्मों को कटवा कर उनकी सजा तकलीफ से बचाने वाले, किसी भी फरियादी की फरियाद को अनसुना न करने वाले, भारी से भारी कर्मों को बड़ी सुगमता से कटवा देने वाले, विधि के विधान की पूरी जानकारी रखने वाले, नसीब के पन्नों पर लेख पर मेख मार देने वाले, गुरु आदेश के पालन करने वालों की संभाल करने वाले वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम (म.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि गृहस्थी में काम है, प्रचार प्रसार का काम है, जीवों को जगाने समझाने बताने का, ध्यान भजन साप्ताहिक सतसंग नाम ध्वनि करने कराने आदि बहुत से काम है। तो इनमें लगो, खाली मत बैठो, समय निकला जा रहा है। अगर संगत की सेवा में संगत के काम में, जीवों की भलाई में लगोगे और भजन में थोड़े कच्चे भी रह जाओगे तो भी गुरु महाराज की दया होगी, पार हो जाओगे। यह निशाना आज मुक्ति दिवस त्योहार के दिन आप बनाओ, कि इस दु:ख के संसार में दु:ख झेलने के लिए हमको आना न पड़े।
आपको जो बताया जाय उसको विश्वास के साथ करो
यह दु:खों का संसार है। यहां कोई सुख है ही नहीं। यदि आप कहो कि यहां तो दु:ख नहीं है तो जब अभी लाइन से हम मिलेंगे लोगों से तो देखना, सब दु:खी हैं। लोग मिलकर चले जाएंगे फिर आगे पहुंच जाएंगे फिर लाइन लगाकर बैठ जाएंगे। अरे हम आदमी है कि मशीन? बताओ! पत्थर के ऊपर ऐसे मत्था पटकते रहो तो वो भी घिस जाता है, हम तो आदमी इंसान हैं, बुड्ढा शरीर है। हमको ज्यादा परेशान आप मत करो, आपको जो बता दिया जाए, उसको विश्वास से साथ करो।
सुमिरन ध्यान भजन नाम ध्वनि प्रचार-प्रसार करो कराओ, इससे कटेंगे कर्म, होगी तकलीफें दूर
किसी को तकलीफ है, कोई दवा दुआ बता दी गई, उसको करो। और अगर (भीड़ या अन्य वजह से) न बता पाऊं या आपको उस पर विश्वास न हो जो बताया गया तो एक बात इस पर विश्वास कर लो आप- भजन, ध्यान, सुमिरन मन लगाकर के सुबह-शाम करो, नाम ध्वनि घर में करो कराओ, प्रचार- प्रसार आप करो, तन मन धन से सेवा करो, उससे भी आपके कर्म कटेंगे, तकलीफ दूर होगी।
कर्म कैसे आते हैं?
देखो जब मौसम बदलता है, खाने-पीने में कोई गलती हो जाती है, मन नहीं मानता है ज्यादा खा जाते हो तो बीमारी तकलीफ हो जाती है। चिकन चुपड़ा खा लिया, दस्त होने लगे, बुखार भी चिकना चुपड़ा खाने से आता है। बहुत ठंडी चीज खा लो की अब ठंडा लग जाये तो बुखार आता है। चिकना ज्यादा हो जाये तो लीवर, आंते ठीक से काम नहीं करती तब बुखार आता है। ये बुखार दस्त आदि तकलीफें तो दवा से ठीक हो जाती हैं लेकिन जो कर्म आ जाते हैं एक दूसरे के, किसी का खा लिया, किसी के शरीर से शरीर छू गया रगड़ खा गया, आंखों से आंखें मिल गई तो उसमें भी कर्म आते हैं। सबसे ज्यादा कर्म आखों से आते हैं। 83% अपराध तो आंखों से ही होता है। कर्म आ जाते हैं तो उसको भोगना या काटना पड़ता है। आपको यह भी नहीं मालूम है कि कर्म आते कैसे हैं और कटते कैसे हैं। तनिक देर में कट जाते हैं, तनिक देर में आ जाते हैं। बाढ़, बीपी की मशीन के पारे की तरह आते, कटते हैं। जब आते हैं तो महसूस होने लगता है। कट जाते हैं तो भी हल्का हो जाता है लेकिन जब जानकारी हो जाती है तब। कर्मों को काटा कटवाया जाता है।
सन्त सेवा भजन कराकर अच्छे कर्मों को जमा करवाते हैं, इन्ही जमा कर्मों से तकलीफ़ दूर होगी
कर्मों को जमा भी कर दिया जाता है। पहले के समय में जब लोग अच्छा कर्म करते थे तो अहंकार आ जाता था। जैसे बहुत धन आपको दे दिया जाए अहंकार आ जाएगा, खर्च कर डालोगे। गवर्नमेंट क्या करती है? तनख्वाह में से कुछ कटवा कर जमा कराती रहती है। जब रिटायर बुड्ढा हो जाएगा, यह पैसा काम आ जाएगा। ऐसे ही जब तकलीफ आएगी तो जो कर्म जमा रहते हैं उन कर्मों से वह तकलीफें दूर की जाती हैं। सुन्न में जमा अच्छे कर्मों से स्वयं की और दूसरे की भी मदद करा दी जाती है। केवल जानकार ही ये कर सकते हैं।
सन्त उमाकान्त जी ने गंगा जी वाली कहानी से समझाया कर्म फल भोगना ही पड़ता है
- अशुद्ध आहार के सेवन से पापी हुए शरीर से की गई पूजा पाठ यज्ञ आदि कबूल नहीं होते
- कई जीवों का खून चाट चुकी, मांस खा चुकी जीभ से बोले श्लोक से देवता खुश नहीं होते
इतने जप तप पूजा पाठ यज्ञ होने पर भी देवता खुश क्यों नहीं हो रहे, इसका वास्तविक कारण बताने वाले, बाहरी जड़ पूजा से आत्मा को फायदा नहीं मिलता तो फिर जीवात्मा को मुक्ति मोक्ष कैसे मिलेगा, वो अनमोल रास्ता बताने वाले, वो रूहानी दौलत देने वाले वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के प्रति माह कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को मनाए जाने वाले मासिक भंडारा पर्व के शुभ अवसर पर 26 जुलाई 2022 प्रातः कालीन बेला में बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कर्मों का फल भोगना पड़ता है, इससे आज तक कोई बच पाया ही नहीं। इसलिए इस शरीर को आप बुरे कर्मों से बचाओ, साफ सुथरा रखो, इसके अंदर गंदगी (मांस, शराब आदि) मत लाओ। ये जितनी भी चीजें, देवी-देवता आप मान बैठे हो ये जीवात्मा को मुक्ति-मोक्ष दिलाने वाले नहीं हुआ करते हैं।
देवताओं की अदालत में सबसे पापी देवता को निकालने का प्रस्ताव आया
एक बार देवताओं की अदालत लगी। तय हुआ कि इसमें पापी नहीं बैठेंगे। सबकी तरफ लोग देखें, बोले की गंगा जी पापी हैं, इनको निकाल दिया जाए। पूछा क्यों? बोले पापी लोग गंगा में स्नान करके कहते हैं पाप को मैंने धो लिया गंगा जी में डाल दिया पाप को, निर्मल हो गए हम। गंगा जी ने कहा देखो भाई जो पापी हमारे में स्नान करते हैं तो मैं उनका पाप को नहीं लेती हूं। मैं तो सूर्य देवता को दे देती हूं। सूर्य देवता उसका शोषण कर लेते हैं। बोले तो सूर्य को निकाल दिया जाए। सूर्य ने कहा हम भी पापी नहीं है। हम पवन देवता को दे देते हैं, हवा ले जाती है। बोले पवन को निकाल दिया जाये। तो पवन ने बोला हम भी नहीं लेते हैं।हम तो मेघराज बादल को दे देते हैं। तो कहा मेघराज सबसे पापी हैं, इनको निकाला जाए। मेघराज ने कहा हम नहीं लेते हैं पाप। हम क्यों लेंगे? पाप को हम तो उन्हीं के ऊपर बरसा देते हैं।
यह कर्म प्रधान देश है, कर्म तो करते हो लेकिन न जानकारी में फल नहीं मिलता
तो कहने का मतलब यह है की प्रेमियों यह कर्म प्रधान देश है। कर्म करते तो हो लेकिन जान नहीं पाते हो तो फल उसका नहीं मिलता है। और अगर कुछ यज्ञ पूजा पाठ करते भी हो तो किसलिए कि यह देवता खुश हो जाएंगे, धन पुत्र परिवार दे देंगे, समय पर जाड़ा गर्मी बरसात करा देंगे, हम व हमारे परिवार वाले खुश हो जाएंगे, किसी को ज्यादा गर्मी ठंडी महसूस नहीं होगी, समय पर बरसात हो जाएगी बढ़िया फसल हो जाएगी आदि। इसके लिए तो करते हो लेकिन देवताओं को खुश करने का सही तरीका तो जानते ही नहीं हो। और दूसरी बात यह नहीं जानते हो कि यह खुश हो जाएंगे तो क्या देंगे। यह खुश हो जाएंगे तो इन्हीं चीजों को आपको देंगे। उन चीज़ों का रिश्ता इस शरीर तक ही सीमित रहेगा, शरीर के लिए ही सुख पहुंचाएंगे, जीवात्मा को यह सुख नहीं पहुंचा सकते हैं।
ये देवता खुश होकर के पहले जैसा समय पर जाड़ा गर्मी बरसात क्यों नहीं कर रहे हैं
उसका यही कारण है कि आज जीव जो भी पूजा-पाठ अनुष्ठान आदि करता है वह उनको कबूल नहीं होता है क्योंकि जिस से करता है वही गंदा है।
उसी हाथ से जीवों को मारा काटा और हाथ से फूल पत्ती प्रसाद चढ़ाते हो वह हाथ ही गंदे हैं
आपको भोजन कराने के लिए बैठा दिया जाए। परोसने वाले का हाथ में मिट्टी गोबर लगा हुआ हो तो उस हाथ से आपको अगर देगा तो खाओगे? नहीं खाओगे। ऐसे ही आपका हाथ, पाँव, शरीर के अंग गन्दे हैं। कैसे? इसी हाथ से मारा काटा खून कत्ल किया, दिल दु:खा कर मार काट कर लाए हाथ तो गंदा है और इसी हाथ से ही तो फूल पत्ती प्रसाद चढ़ाते हैं।
जिन पैरों से गलत काम करने के लिए गए उन्ही गन्दे पैरों से मंदिर भी तो गए
पैर गंदे हैं, गलत काम के लिए गए। अब उसी पैर से चलकर के छोटे-बड़े मंदिर में, कितना भी भव्य प्रतिष्ठित हो चाहे सोने का ही मंदिर बना हुआ हो लेकिन वहां पर भी जाओगे पूजा करने के लिए तो पैर से ही चल करके जाओगे। पैर ही दूषित है तो कैसे होगा।
आदमी की बनाई हुई मूर्ति को जिससे देखते हो वो आंख ही गंदी हैं
चाहे श्रद्धा से देखते हो, सोने चांदी की मूर्ति जो आदमी ने बनाया, भगवान को मानलो बना दिया। भगवान ने तो आदमी को बनाया लेकिन आदमी जिसको देखा नहीं भगवान को बना दिया और आपने मान भी लिया कि यही भगवान है। तो आंखों से तो ही उनको देखोगे। यह आंखें जो गंदी हैं तो कैसे होगा।
जीभ कितने जीवों का खून चाट चुकी हैं
मुंह से लोग श्लोक पढ़ते हो, यह कहां से पढ़ते हो? जीभ कितने जीवों का खून चाट चुकी है, कितने जानवरों का मांस खा चुकी है, कितने जीवों की हत्या करा चुकी है। तो उसी जीभ से जब श्लोक पढ़ोगे तो देवता खुश होंगे? कभी नहीं खुश होंगे। इसलिए इसको साफ रखो। मनुष्य के अंदर ऐसा कोई खून नहीं बनना चाहिए जो पशु-पक्षी के मांस का बना हुआ हो। बेमेल खून से बीमारियां भी आती है।
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