साधना करके अंतर में गुरु महाराज से ही पूछ लो, उमाकान्त जी को नामदान देने के लिए कहा था या नहीं

  • रानी इंदुमती ने साधना में देखा कि उस समय के सतगुरु कबीर साहब ही पूरी सृष्टि चला रहे हैं
  • जो गुरु के मुख से निकली हुई बात को भूलेंगे उनको काल खाएगा

बेगुसराय (बिहार)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, आदि काल से चले आ रहे पांच नामों के नामदान को देने वाले एकमात्र अधिकारी, सक्षम, अंतर में दर्शन देकर जलवा दिखा कर सब भूल भ्रम दूर कराने वाले, बाहर से अपनी असीमित पावर को मर्यादा की डोरी में बांध कर छुपा कर रखने वाले, काल से बचाने वाले, जीते जी रघु के पति से मिलाने वाले इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 14 अक्टूबर 2022 प्रातः बेगुसराय (बिहार) में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जब हम गुरु के गुलाम बन जाते हैं तब गुरु जो करते हैं वह अपने (भक्तों के) लिए अच्छा ही करते हैं।

सतगुरु त्रिकालदर्शी होते हैं

क्योंकि वह भूत वर्तमान भविष्य सब देखते हैं। आगे क्या होने वाला है, अब इसके लिए क्या जरूरी है, पिछले जन्म में इसका कैसे क्या रहा, इसके कर्म कैसे कटेंगे, कैसे इसकी सजा खत्म होगी, यह सब उनको मालूम रहता है। उसी तरह का उपाय उसके लिए बता देते हैं, सबके लिए बता देते हैं। जब उस तरह से मरीजों की संख्या ज्यादा हो जाती है तो उसी तरह की दवाई उपाय बता देते हैं। वह तो समझ जाते हैं, जान जाते हैं लेकिन हम उनको समझ नहीं पाते। किसको? गुरु को। आप बहुत से लोग भटकाव में आ गए, गुरु महाराज को नहीं समझ पाए कि गुरु महाराज कौन थे। क्योंकि उनके हड्डियां और मांस में ताकत को खोजने लग गए। गुरु महाराज सिर पर हाथ रख देते थे, चेतनता आनंद आ जाता था, मुंह से बोल कर के सतसंग सुना करके समझा देते थे उससे दिशा मिल जाती थी तो उतना ही समझ पाए।

अंतर में जब गुरु का दर्शन करोगे तब उनकी महिमा का पता चलेगा

अंतर में रूप देखने पर गुरु को समझोगे, उनकी महिमा का पता चलेगा क्योंकि हाड मांस के शरीर में ही महापुरुष इस धरती पर आते है। इसी धरती पर रहते हैं, यही अन्न पानी खाते पीते, बोली बानी भी ऐसी रहती है तो बाहर से पहचान नहीं हो पाती। अंदर में कबीर साहब को उनकी शिष्या रानी इंदुमती ने देखा कहा सचखंड के मालिक यही हैं, यह तो संपूर्ण सृष्टि को चला रहे हैं। जितने भी अंड पिंड ब्रह्मण्ड हैं सबके मालिक यही हैं। तब कहा अगर आप हमको मृत्युलोक में बता दिए होते की मैं ही सब कुछ हूं तो हमको इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती। तब उन्होंने कहा तुझको विश्वास न होता। तू कहती मनुष्य शरीर में इतनी शक्ति कैसे हो सकती है। इसलिए मैंने तुझको रास्ता बताया, रास्ते पर चलाया और जलवा दिखाया तब तुझको विश्वास हुआ। तब चरणों पर गिर पड़ी फिर बोली आपके मदद के बगैर मैं एक कदम भी आगे बढ़ ही नहीं पाती। मैं तो ऐसे विषय वासना में फंसी हुई थी कि मुझको आप याद भी न आते। आपकी दया ही ऐसी रही जिससे आप हमको मृत्युलोक अंड पिंड ब्रह्मांड आदि अनेक लोकों से निकाले फिर हमको लाए हैं। आप की महिमा का वर्णन किया ही नहीं जा सकता।

रघु के पति जो करते हैं वैसा ही होता है

गोस्वामी जी ने कहा है- जेहि क्षण रघुपति जस करें, तेहि क्षण तैसे होय।

रघुपति, पति किसको कहते है? मालिक को। राम के दादा बाबा कौन थे? यह रघु थे। रघु के पति, वह प्रभु, वह अनामी धाम का प्रभु, सतलोक का प्रभु, वह जैसा करता है उस तरह से होता है। सब कुछ होते हुए भी गुरु की पहचान आपको तभी हो पाएगी जब उनके बताए हुए रास्ते पर आप चलोगे।

जो गुरु के मुख से निकली हुई बात को भूलेंगे उनको काल खाएगा

जो नामदान गुरु महाराज से ले चुके हो उनको विशेष रूप से मुझको बताना है कि आप गुरु के आदेश का पालन करो। गुरु को मानुष मत जानो कि वो मनुष्य थे, अब शरीर छोड़ करके चले गए। कहा गया है-

गुरु को मानुष जानते, ते नर कहिए अंध। महादुःखी संसार में, आगे यम के फंद।।

गुरु को मनुष्य शरीर मान करके उनके मुंह से निकली हुई बात को भूल जाएंगे, नहीं कर पाएंगे तो यह काल और माया का देश है।

गुरु माथे से उतरे, शब्द बिहूना होय। ताकौ काल घसीटिये, बचा सके न कोय।।

काल तो इस शरीर से पाप कराएगा, उसी में फंस जाएंगे। फिर तो जन्म-मरण की पीड़ा झेलनी पड़ जाएगी। इसलिए-

मंत्र मूलम गुरु वाक्यम, मोक्ष मूलं गुरु कृपा।

जब गुरु की कृपा हो जाएगी यह जीवात्मा जब सतलोक पहुंच जाएगी तब यह नीचे नहीं उतरेगी।

सभी पुराने नामदानी, साधना करके गुरु महाराज से ही पूछ लो, करो अपनी शंका खत्म

कहने का मतलब यह है सुमिरन ध्यान भजन रोज करो और अंतर में ध्यान जब लगाओगे, गुरु महाराज मिलेंगे तब सब शंका आपकी निकल जाएगी। फिर आपको किसी से कुछ पूछने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी कि भाई सच बताओ। क्या बाबा जयगुरुदेव ने उमाकान्त (जी महाराज) को कहा था नयों को नाम दान देने, पुरानों की संभाल के लिए? कहा था कि नहीं कहा था? जब अंतर में आप गुरु महाराज का दर्शन करोगे, उन्हीं से पूछ लेना, वही आपको बता, समझा देंगे। फिर आपको भूल-भ्रम में कोई डाल नहीं पाएगा। कहा था कि नहीं कहा था, अपने आप बन गए, टाट उतार दिए, नामदान देने लग गए, अब तो उद्धार केवल जयगुरुदेव नाम से होगा, पांच नाम की जरूरत ही नहीं है आदि। इस तरह कोई आपको भूल भ्रम में नहीं डाल पाएगा।

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