फोटो मूर्तियां किताबें आदि मुक्ति मोक्ष नहीं दे सकती हैं तो कैसे मिलेगा, वो तरीका बताया सन्त उमाकान्त जी महाराज ने

भवसागर पार करने के लिए मौजूदा जीवित गुरु की जरूरत होती है

मां के पेट में बच्चों को पिछले जन्मों का दिखाई देता है

भरुच (गुजरात) । प्रेम के मोल बिकने वाले, इस धरती पर इस समय के मौजूदा सन्त, जीते जी मुक्ति-मोक्ष का मार्ग बताने वाले, उस पर चलाने वाले, और चला कर मंजिल पर पहुंचाने वाले, अन्तर में दर्शन देने वाले, बाहर दुनिया में सभी तकलीफों से बचाने वाले, जितना कहा जाय कम है, ऐसे इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 30 जनवरी 2021 दोपहर गोपालग्राम, अमरेली (गुजरात) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि करोड़ों जन्मों तक भटकने के बाद मनुष्य शरीर मिलता है तो मां के पेट में पूरा दिखाई पड़ता है कि देखो हम मेंढक, कुत्ता, बिल्ली, पक्षी, नाली के कीड़ा, लैट्रिन के कीड़ा आदि बन गए, हम नरकों में मारे-काटे जा रहे हैं, हमको बकरा बना कर काट दिया तब छटपटा चिल्ला रहा हूं। यह सब मां के पेट में दिखाई पड़ता है। तब रोता है बच्चा? कहता है दया करो, दया करो अब (इस गर्भ रूपी तकलीफ के स्थान से) बाहर निकालो। कहा गया राम राम सब कोई कहे, ठग ठाकुर और चोर, बिना प्रेम रीझे नहीं, स्वामी नंदकिशोर आप भगवान को तो याद करते हो लेकिन भगवान मे लय नहीं हो पाते, उनको देख नहीं पाते, उनको अपनी तरफ दिखा नहीं सकते हो। वह तरीका आपको मालूम नहीं है इसीलिए वह देखते स्वीकार नहीं करते हैं। आप अपने शरीर का खान-पान गंदा करके अपने इस मानव मंदिर को गंदा कर लेते हो फिर इससे आपके किये यज्ञ पूजा जप तप भजन को वह प्रभू कबूल नहीं करता है। मां के पेट में बच्चे को(कर्मों की) गंदगी नहीं रहती है। शरीर 5 महीना 10 दिन का होने पर उसमें जीवात्मा डाली जाती है। वह रास्ता साफ रहता है तो उससे मालिक को, भगवान को भी देखता रहता है इसीलिए तकलीफ में उसको राहत शान्ति रहती है। नहीं तो उसी में उसका दम घुट जाए, ख़त्म हो जाए। सब सीधा देखता है। उपर जा तो नहीं सकता। जैसे ऊपर से कोई नीचे फेंकी चीज अपने आप नहीं जा सकती, उसे तो कोई उठाकर ले जाएगा ऊपर फेकेगा तो युक्ति उपाय से ही जाएगी। ऐसे ही जीवात्मा जब नीचे उतारी जाती है तो युक्ति से उपाय से ही उस प्रभु के पास पहुंच सकती है। (वो युक्ति समय के सतगुरु बताते हैं)

यह धरती सन्तों से कभी खाली नहीं रही

महापुरुष हमेशा इस धरती पर रहे। चाहे अवतारी शक्तियो के रूप में, चाहे ऋषि मुनि, चाहे सन्तों के रूप में रहे हो। यह धरती कभी सन्तों से खाली नहीं रही। घिरी बदरिया पाप की, बरस रहे अंगार, सन्त न होते जगत में तो जल मरता संसार सन्त हमेशा रहते हैं। कभी गुप्त और कभी प्रकट रूप में रहते हैं। जब पापाचार अत्याचार कम रहता है तो एक जगह बैठ कर संभाल करते हैं और ज्यादा होने पर घूम-घूम कर लोगों को बताते समझाते सिखाते हैं। तो जब महापुरुष चले जाते हैं, मनुष्य शरीर में होने के कारण उनको मनुष्य शरीर छोड़ना पड़ता है तब उनकी कही या लिखी हुई बातों का लोग ग्रंथ, धार्मिक किताब बना लेते हैं। उसमें सारी चीजें लिखी हुई रहती है लेकिन जब कोई उतना, उस स्तर का जानकार मिलता है तब वह समझाता है तब असली अर्थ समझ में आता है।

फोटो मूर्तियां आदि मुक्ति-मोक्ष दे नहीं सकते हैं

सतगुरु हमेशा इस धरती पर रहते हैं। वह हमेशा ज्ञान कराते हैं, लोक और परलोक दोनों बनाने का तरीका बताते हैं। यह (पास में) गुरु महाराज नहीं, इनकी फोटो है। महापुरुष आते हैं, अच्छा काम करते हैं और चले जाते हैं। उनके इतिहास को लोग पढ़ते हैं तो मूर्तियां बना देते हैं। जब कैमरा चला तो फोटो खींच करके लगाने लगे। अब लोगों की यही सोच हो गई। उनको इसी तरह की शिक्षा मिली कि मूर्ति, फोटो की पूजा कर लो, मुक्ति-मोक्ष मिल जाएगा। ऐसे मुक्ति-मोक्ष मिलना इतना आसान नहीं है। इसका तरीका उपाय अलग है। तो फोटो-मूर्तियां कभी भी मुक्ति-मोक्ष शांति दे ही नहीं सकती है। वह तो आदमी की उतनी देर की धार्मिक भावना का फल मिल जाता है लेकिन लोगों की तकलीफ नहीं जाती है क्योंकि कर्मों की जानकारी नहीं हो पाती है कि कैसे कर्म करना चाहिए। और बुरा कर्म बनने पर शरीर से उसको भोगना पड़ता है। यहां रहो तो यहां भोगो। जैसे कहते हो चोरी व्यभिचार करना बुरा कर्म है और वही कर डालते हो तो जेल जाना पड़ता है। (पहले) यहां सजा मिलती है फिर नरकों में सजा मिलती है। तो कर्मों से कोई बच नहीं पाया। और कर्म आदमी के सही होते नहीं तो लाभ नहीं मिल पाता है।

मौजूदा गुरु की जरूरत होती है तो फोटो क्यों लगते हैं

मौजूदा गुरु जब रहते हैं तब हर तरह का ज्ञान जानकारी कराते रहते हैं। मौजूदा वैद्य डॉक्टर शिक्षक से ही इलाज पढ़ाई कराई जा सकती है। तो गुरु महाराज का यह फोटो क्यों लगाया जाता है? यादगार के लिए क्योंकि गुरु का दर्जा सबसे ऊंचा होता है। पहले जितने भी महापुरुष हुए, सब लोगों ने गुरु को याद, प्रणाम किया। गुरु ही सब कुछ होते हैं। कहा गया गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय गुरु और भगवान दोनों खड़े हुए हैं तो पहले गुरु का पैर पकड़ना चाहिए। क्योंकि इन्होंने ही इनको (प्रभू को) दर्शाया दिखाया है। तो गुरु की पूजा हमेशा हुई। इसलिए- गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छूटना। गुरु का ध्यान करना पड़ता है। जब सूक्ष्म शरीर में गुरु का दर्शन मिलने लगता है तब फोटो लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन सब लोग ऐसे होते नहीं इसलिए घर में लगा दिया जाता है।

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