नदी पेड़ के समान सन्त भी परोपकारी परमार्थी नि:स्वार्थ सज्जन उदार होते हैं

बाबा उमाकान्त जी ने बताया एक दीपावली अंतर में होती है

कर्मों के अनुसार साधना में उतार-चढ़ाव आता रहता है

उज्जैन (म.प्र.)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 25 अक्टूबर 2022 प्रातः उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सुनो सुनो ए मेरे भाई अपना स्वार्थ नहीं है कोई, शाकाहारी बना रहे नरकों से बचा रहे हैं। आप ऐसा कहो नहीं तो लोग सोचते हैं कि कहीं ये अपनी टीम अपना आदमी बना रहे हो फिर हमसे पैसा मांगेंगे, अपना स्वार्थ सिद्ध करेंगे। तो कह दो, अपना स्वार्थ नहीं है क्योंकि परमार्थ में स्वार्थ नहीं होता है। परमार्थी कौन होते हैं? परमार्थ के कारने संतन धरा शरीर, वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर। परमार्थी यह पेड़ नदी होते हैं। खुद अपना फल, पानी नहीं खाते-पीते। कोई भी फल खाए, पानी पिए, नहाए धोए, किसी को मना नहीं करते, कोई जाति पाती आदमी पशु पक्षी का भेदभाव उनके अंदर नहीं है। वह तो परमार्थ के लिए ही है। अपनी उदारता सज्जनता परोपकारी गुण नहीं छोड़ते। पत्थर मारने पर भी बढिया पका हुआ फल देता है कि इच्छा की तृप्ति हो जाए। ऐसे ही सन्त होते हैं। गुरु महाराज जैसे सन्त की दया आपके ऊपर हो रही है, उनकी दया से आप जुड़ गए हो तो आपको भी परोपकारी होना चाहिए।

कर्मों के अनुसार साधना में उतार-चढ़ाव आता रहता है

महाराज जी ने 24 अक्टूबर 2022 प्रातः उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि आदमी के जीवन में कर्मों के अनुसार साधना में उतार-चढ़ाव होता रहता है। धन, प्रतिष्ठा, निंदा-अपमान कम-ज्यादा होता रहता है। कभी साधक की साधना अच्छी बनती है और कभी रुक जाती है, कभी बिल्कुल बंद हो जाती है। तो आदमी को सोचते रहना चाहिए कि जब चढ़ाव आया तो उतार क्यों आ गया? क्या कमी रही? बिजनेस व्यापार में फायदा फिर नुकसान हुआ तो नुकसान क्यों हुआ? लोभ लालच बढ़ा या अनुभवहीनता रही जिससे बगैर सोचे-समझे काम कर लिया और नुकसान हो गया। इसी तरह से साधकों, भक्तों को भी देखना चाहिए कि भक्ति में कमी कैसे क्यूँ आ रही है। जैसे आप आज सतसंग में आये हुए, यदि आपके अंदर भक्ति, गुरु के प्रति प्रेम न जगा होता तो आप यहां नहीं आते लेकिन यह भाव बना रह जाए। सतसंग में आने के बाद यही प्रार्थना गुरु से करनी चाहिए कि आपके प्रेम में, आपकी बातों को सुनने के लिए, आपके आदेश का पालन करने के लिए जब हम यहां पर आयें तो हमारा भाव इसी तरह का रहे कि जिससे भाव में कमी न आवे और सतसंग में आने से, सतसंग सुनने से, ध्यान भजन करने से जो हमको अंदर में दया प्रेम और शांति मिल रही है, वह बराबर बनी रहे।

सन्तमत का प्रचार कुछ समय तक होता रहा है और आगे कुछ समय तक होगा

महाराज जी ने 24 अक्टूबर 2022 दोपहर उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि गुरु की अंतर में पहचान होती है और जिनको अंतर से पहचान हो जाती है हो गई वे तो डंके की चोट पर कहते हैं कि ये ही मनुष्य शरीर में परमात्मा हैं, सन्त हैं, पूरे सन्त हैं, सतपुरुष के तदरूप हैं। और जब गुरु का आदेश हो जाता है तब तो वह बोलने में संकोच नहीं करता है। जब तक आदेश नहीं होता है तब तक अपने उस ज्ञान को छुपाए रहता है। जब आदेश हो जाता है तब आज्ञा का उल्लंघन नहीं होता है तब तो आदेश का पालन होता है। तब वही प्रचार कर दिया करता है। सन्तों का, सन्तमत का, सन्तों की महिमा का प्रचार इसी तरह से होता रहा है और इसी तरह से आगे भी कुछ समय तक होता रहेगा।

एक दीपावली अंतर में होती है

एक दीपावली अंतर में होती है। वह ज्योति अगर अंदर में दिखाई पड़ जाए, अंदर में जल जाए तो फिर इस (बाहरी) आंख की कोई जरूरत नहीं रहती है। अंदर की आंख से ही बाहर और अंदर देखा जा सकता है। बहुत समय पहले की बात है गुरु महाराज के एक प्रेमी थे गोरखपुर में। नामदानी थे उनकी आंख चली गई थी। उनको बाहर से दिखाई नहीं पड़ता था। लेकिन अंदर की आंख उनकी खुली हुई थी। तो टट्टी पेशाब कराने के लिए उनका पोता उनको ले जाया करता था। घर का कोई भी आदमी उनको ले जाता था। बाहर लोग जाते थे। पहले आज की तरह तो लैट्रिंग नहीं थी। कोई भी काम के लिए कहीं जाना होता तो परिवार के लोग उनको ले जाते थे लेकिन कभी-कभी प्रेमी लोग जब उनसे मिलने के लिए आते तो वह देख करके उससे कह देते अरे यह तो बहुत दिन के बाद आ रहा है, अरे यह तो पेरवा (पीला) कुर्ता पहने हुए हैं, ऐसे मौज में देखकर के बोल देते थे। तो बहुएं कहती थी यह तो नाटक किये हुये हैं, नौटंकी करते हैं, सहारा खोजते हैं। यह देखते सब है लेकिन यह बताते नहीं है। समझ लो, अगर एक बार अंदर में उजाला हो जाए, अंदर में दीपक जल जाए, अंदर के आंख की गंदगी खत्म हो जाए तो जीवन उज्जवलमय हो जाता है। लोग कहते हैं आपका भविष्य उज्जवलमय हो, जीवन उज्जवलमय हो। तो यह फिर उज्जवलमय हो जाता है। फिर यहाँ कोई दीपक जलाओ न जलाओ, कोई भी काजल इसमें लगाओ न लगाओ, बाहर में तो फिर कोई जरूरत ही नहीं है। अंदर में घट में उजाला हो जाए तो सब काम अभी प्रेमियों बन जाए।

पेड लगाना चाहिए, पहले देखा करो कि कोई चीज खाने-पीने के लायक है या नहीं

महाराज जी ने 1 जून 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिये संदेश में बताया कि वातावरण खराब, दूषित हो जाएगा इसीलिए बचने के लिए पेड़ लगाओ। जीव तो पेड़ों में भी है, लगाना चाहिए। जल साफ सुथरा देखकर के पीते हो कि इसमें कोई तिनका न पड़ा हो, कोई कीड़े-मकोड़े न आ गए हो, देख कर के पीते हो। देख करके पानी पीना चाहिए। ऐसे नहीं कि कोई दे दिया और फटाफट गटागट पीते न चले गए। भोजन भी जो खाना है, देख करके खाओ कि खाने लायक है या नहीं।

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