भौतिक ज्ञान वाले आध्यात्मिक ज्ञान को क्यों नहीं समझ पाते हैं?

पुत्र, परिवार, पति, पत्नी कैसे दुश्मन का काम करते हैं?

उज्जैन (म.प्र.)। अनमोल मनुष्य जीवन क्यों मिला है, इसका क्या उद्देश्य है, कैसे पूरा होगा, कैसे प्रभु मिलेंगे, इसमें क्या-क्या बाधा आती है, सब तरह का ज्ञान अपने सतसंग में करा देने वाले, भक्त की संभाल यहां और वहां करने वाले, सर्व व्यापक, सर्व समर्थ, वक़्त के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, दीनबंधु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 3 मार्च 2019 दोपहर लखनऊ यूपी में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सांसों की पूंजी की ही कीमत होती है।

सांसों की पूंजी (प्रभु का सच्चा) भजन करने के लिए, आत्मा के कल्याण के लिए मिली। देखो लोग इन सांसों की पूंजी को कैसे-कैसे कहां खर्च कर देते हैं? इन सांसों की पूंजी को बर्बाद करने वाले यह सब लोग हैं जिनको आदमी अपना, मददगार समझता है कि यह हमारे हर मुसीबत में, जवानी में चाहे बुढ़ापे में मददगार होंगे? यह हमारे पुत्र, परिवार, पति-पत्नी है। यह सब लोग क्या करते हैं? यह लोग दुश्मन का काम करते हैं। दुश्मन क्या काम करता हैं ? दुश्मन खत्म करने का काम करता है। दुश्मन धन, प्रतिष्ठा, राज्य को खत्म करने की सोचता, शरीर को भी कटवा-मरवा देता है। जैसे कहते हैं, ज्यादा मिठास में कीड़े पड़ जाते हैं। ऐसे ही देखने में तो मीठा लगता है लेकिन इसी में कीड़े पड़ जाते हैं और ये कोई काम के नहीं होते। यह जो पुत्र, परिवार, धन-दौलत, ऐश-आराम की दुनिया की चीजें हैं, यह दुश्मन है क्योंकि इसी में मन लगा हुआ है और इसी में यह समय निकला जा रहा। ये उम्र, सांसो की पूंजी को खत्म करने में लगे हुए हैं। यह विधि का विधान है कि जो मनुष्य शरीर में आता है, उसको शरीर छोड़ना पड़ता है। इसलिए अपना असला काम पहले करो।

सास की सेवा करने से क्या होगा?

बुजुर्गों को जीवन का बड़ा अनुभव होता है। इसलिए कहा जाता है बुजुर्गों के पास बैठना, सीख लेनी चाहिए। बच्चियों को अपनी सास की सेवा करनी चाहिए। मां को, सास को प्रसन्न करके जीवन में गृहस्थ आश्रम में हम खुशहाल कैसे रहेंगे, इसकी सीख ले लेनी चाहिए।

भौतिक ज्ञान वाले आध्यात्मिक ज्ञान को क्यों नहीं समझ पाते हैं?

सन्तों ने आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सब धार्मिक किताबें लिखी लेकिन भौतिक विद्या वाले भौतिक ज्ञान वाले भौतिकता में अकल लगाने वाले इन्ही किताबों, चौपाइयों, श्लोकों को नहीं समझ पाते हैं और अर्थ का अनर्थ कर देते हैं। और जब समझ नहीं पाएंगे, कोई भेदी समझाने वाला नहीं मिला तो ऐसे ही भटकते रह जाते हैं, जीवन में निराशा ही हाथ आती है। जैसे कहा गया है- करले निज काज जवानी में, इस दो दिन की जिंदगानी में। एक दिन यह जवानी खत्म हो जाएगी। अपना असला काम, प्रभु की प्राप्ति का, जीवात्मा को निजात मुक्ति दिलाने का है, वह काम कर ले नहीं तो निराशा हाथ आएगी। बुढ़ापे में कुछ नहीं हो पाता है।

सतसंग में क्या धरा है?

सुख और शांति शरीर के अंदर ही भरा हुआ है। जैसे कहा गया है सतसंग में सुख शांति धरो है, मानव का परमार्थ धरो है। हम भी आप ही की तरह सतसंग में बैठते थे। सतसंग में जिस तरह से शांति मिलती है, अच्छा महसूस होता है, इसी तरह से अंदर में शांति सुख सब कुछ भरा हुआ है। अंदर में तो वह चीज मिलती ही मिलती है। साथ ही जिसने इन चीजों को, सुख शांति को बनाया है, इसको बनाने वाले से भी परे, जो उनको बनाया, वह भी मिल जाते हैं।

गुरु कैसे ऊपर के लोकों में समाए हुए रहते हैं?

गुरु हाड़ मांस के शरीर का नाम नहीं होता है। गुरु एक पावर शक्ति होती है। हर लोकों में वह शक्ति मौजूद रहती और मदद करती है। जिन धनियों का जो लोक है, गुरु एक तरह से उसमें समाए हुए रहते हैं। समाये हुए का मतलब उसमें अंदर घुस जाना नहीं होता है। जैसे भारत में बहुत से हर तरह के लोग हैं। कहते हैं इसमें सब तरह के लोग भरे पड़े हैं। ऐसे ही जो ऊपर के लोक हैं, वहां की जो आत्मायें है, वह एक जैसी ही है वहां पर। तो उसमें वह मिलते, समाये रहते हैं। तो समझो गुरु सब जगह मदद करते हैं लेकिन गुरु की बातों पर विश्वास हो जाए।जैसे स्कूल में विद्यार्थी विश्वास के साथ जाता है। 

ऐसे ही गुरु की बातों पर विश्वास हो और घाट पर बैठा जाए तो पार होने में देर नहीं लगती है। लेकिन बैठ ही नहीं पाते हैं। जैसा मैंने बताया, जिनको अपना हित समझते हैं, पुत्र, परिवार, मान प्रतिष्ठा दुनिया की चीजों को, वह दुश्मन लगे हुए हैं। तो कैसे यह (अपना असला काम) हो सकता है? इसलिए सब कुछ करो, गृहस्थ आश्रम, मनुष्य शरीर पाने का यह धर्म बनता है कि इसको खिलाओ, पहनाओ, सुलाओ, शरीर को आराम कराओ नहीं तो बीमार तकलीफ हो जाएगी, आश्रितों की देख-रेख संभाल भी जरुरी है, यह सारी चीजें जरूरी है क्योंकि इस मृत्युलोक में मनुष्य शरीर में हो लेकिन साथ में अपना आत्म कल्याण का काम भी करो।

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