आज यम द्वितीया (भाई दूज) के दिन से, जिनको नामदान मिल गया, वो अपनी आत्मा के कल्याण के काम में लगो : बाबा उमाकान्त महाराज

नकल में लोग असल को भूलते जा रहे हैं - सन्त बाबा उमाकान्त जी

उज्जैन (म.प्र)। इस लेने-देने के संसार में सबका लोगों का कर्जा आप आराम से अदा कर पाओ ताकि जीवात्मा को मुक्ति मोक्ष मिल सके, ऐसा अति सरल उपाय अपने सतसंग में बताने वाले, दुखहर्ता, उज्जैन वाले पूरे सन्त सतगुरु, बाबा उमाकान्त महाराज जी ने 14 नवम्बर 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित लाइव सतसंग में बताया कि यम द्वितीया मनाने का अलग-अलग तरीका है। कहीं बहने, भाई के घर जाएँगी, कहीं भाई, बहनों के घर जाएंगे। पौराणिक कथाओं में आता है कि आज के दिन यमराज, जो मालिक हैं, वह उस समय पर नर्क में जो जीव थे, उन जीवों को निकाल करके, उनका उद्धार करके अपनी बहन यमुना के घर गए थे। जो बहुत सी बहनें आज के दिन भाई के लिए करती हैं, यमुना ने वो उनका बड़ा स्वागत सत्कार किया, तिलक किया, खिलाया, पिलाया। यमराज खुश हो गए और कहा कि हमसे वरदान मांग लो। तो उन्होंने कहा, आज के दिन जो भाईयों को मानेगी बहन, भाई के घर जाएगी, वह आपके चंगुल से बची रहेगी, भाई-बहन बचे रहेंगे, ऐसा उन्होंने कहा था।

कर्मों की सजा भोगनी पड़ेगी इस पर ज्यादा ध्यान देने और दिलाने की जरूरत

किसी के लिए कोई घटना हो गई और यदि आपमें पावर ताकत है तो आप किसी को भी छोड़ सकते हो। जैसे भारत देश के राष्ट्रपति को पावर है कि किसी भी फांसी की सजा पाए अपराधी को छोड़ सकता है। 1-2-4 को छोड़ दिया। अगर वह सबको छोड़ने लग जाए तो नियम का उल्लंघन हो जाएगा। फिर तो सब अपराध करने लग जाएंगे। विधान ही बदल जाएगा, विधान, नियम गलत हो जाएगा। इसलिए जो नियम बन गया कि कर्मों की सजा भोगनी पड़ेगी, इस पर लोगों को ज्यादा ध्यान देने और दिलाने की जरूरत है। कर्मों से कोई बच नहीं सकता है।

आज के दिन बहन और भाई यह भ्रम निकाल दें

यमुना के घर यमराज गए थे। नर्क में भले ही दो-चार जीव रहे हो, थोड़े ही रहे हो लेकिन उस समय लोगों के कर्म कम खराब रहते थे, कम जाते थे तो कम ही रहे होंगे। अब तो ज्यादा कर्म खराब हो रहे हैं, ज्यादा जीव नरक गामी हो रहे हैं। काल भगवान, जो यमराज के भी पूज्य हैं, उनका बनाया हुआ विधान कैसे गलत हो सकता है? इसलिए यह भ्रम आज के दिन निकाल देना चाहिए कि बहन पूजा कर लेगी, बहन को हम खिला-पिला देंगे, भेंट दक्षिणा दे देंगे तो हमको नर्क से मुक्ति मिल जाएगी। ऐसा नहीं हो सकता। कर्मों की सजा तो भोगनी ही पड़ती है, लेना-देना तो अदा करना ही पड़ता है। ऐसे बहुत से द्रष्टांत मिलते हैं कि कर्मों का फल तो मिला ही मिला। इसके बाद महाराज जी ने रावलपिंडी की लड़ाई, सहारनपुर के व्यापारी वाली घटना से इसी बात को समझाया।

सच पूछा जाए तो कोई किसी का नहीं है

यह तो लेना-देना है, कर्जा है। असला तो अपना मालिक है, अपना पिता परमेश्वर है। हम लोग नकल में उसको भूल जाते हैं। अगर उसको हमेशा याद रखें, अगर उसका दर्शन दीदार अंतर में हो जाए, उसका वरदहस्त अगर सिर पर पड़ जाए फिर कोई दिक्कत नहीं रह जाएगी। यह सारे लोक, यमराज के लोक, यह सब देवलोक आदि सब छूट जाते हैं। इनका कोई झंझट, कोई डर ही नहीं रहता है। अगर आप साधना करने लग जाओ, जो युक्ति आपको मिली है, गुरु महाराज ने जो दिया, उनके जाने के बाद जो नाम आपको बताए गए, उन नये लोगों पर भी गुरु महाराज की दया हो रही है। इनका कोई डर भय नहीं, तीन लोक भय नहीं रहेगा। एक तो इस आत्मा के कल्याण के काम में लगो, लेना-देना वाली बात है तो इसको भी अदा करते जाओ।

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