राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जगत को राममय सिद्ध करने की 99 वर्षों की अनथक यात्रा


संजय तिवारी

आज विश्व राम मय है। केवल भारत ही नहीं, दुनिया भर श्रीराम की चर्चा है। श्री अयोध्या जी की चर्चा है और लोग मांग रहे हैं श्रीरामचरित मानस। वह मानस जिसके लिए स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिख दिया - रचि महेश निज मानस राखा। इस मानस की आस्था को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ठीक से जानते थे। इसी लिए उन्होंने संघ की स्थापना के संकल्प में कहा था कि राष्ट्र को एक सूत्र में केवल आस्था ही बांध सकती है। उनके इसी संकल्प को आगे बढ़ाया द्वितीय सर संघ चालक पूज्य गुरुजी गोलवरकर ने। गुरुजी को कांची के तत्कालीन शंकराचार्य जी साक्षात शिव का अवतार कहते थे। यह लंबी चर्चा के विंदु हैं। अभी चर्चा केवल इस विंदु पर कि 99 वर्षों की अपनी अनथक यात्रा में संघ ने आज विश्व को यदि राममय कर दिया है तो इस पर बात होनी ही चाहिए।

अब से पांच सौ वर्ष पूर्व जब आक्रांता बाबर के आदेश के बाद श्रीराम जन्मभूमि का मंदिर टूट रहा था तो किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उसी दौर में कोई शिव किसी तुलसी से श्रीरामचरित मानस लिखवाएगा। कोई नही कल्पना कर सकता था कि तुलसी के शब्द प्रत्येक भारतीय के हृदय में राम को अंकित कर देंगे और बाबर अथवा उसके किसी गुलाम को जरा भी भान नहीं होगा कि 500 वर्षों में दुनिया राममय हो जायेगी। यद्यपि तुलसी दास ने उसी समय लिख दिया था_ सीयराममय सब जग जानी, करहूं प्रणाम जोरि जुग पानी।।

श्री अयोध्या जी में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान अब अंतिम चरण में है। भारत के प्रधानमंत्री ने स्वयं को इस अनुष्ठान के लिए समर्पित किया है। श्री अयोध्या जी में दृश्य राजसूय यज्ञ जैसा है। विगत हजार वर्षों के इतिहास में किसी ने राजसूय यज्ञ कब देखा ज्ञात नहीं लेकिन प्राचीन ग्रंथ जिस दृश्य का वर्णन करते हैं वह श्री अयोध्या जी में दिख रहा। इस पूरी प्रक्रिया में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका और धैर्य को देखा जाना चाहिए। 1925 में संघ की स्थापना से लेकर आज तक की इस यात्रा का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। 

संघ के संथापक का ध्येय वाक्य और वर्तमान सरसंघ चालक तक के संकल्प और संघ के परिश्रम को देखने का समय है। आगे के दिनों में संघ जब अपनी शताब्दी वर्ष के आयोजन करेगा तो बहुत कुछ लिखा जाएगा। वह बाद की बात है लेकिन आज यह अवश्य लिखना जरूरी है कि आस्था के आधार पर सेवा और समर्पण के साथ संकल्पित संघ ने एक युग चक्रवर्ती के रूप में नरेंद्र मोदी नाम के एक स्वयंसेवक को गढ़ा और अब उसी आस्था के साथ विश्व को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम से सीधे जोड़ने का कार्य कर दिखाया है। आज रामकथा केवल कोई मिथ नहीं बल्कि दुनिया राम को खोज रही है और उनको पाने को आतुर है। 

अपनी 99 वर्षों की यात्रा में संघ ने आधुनिक विश्व को यह स्वीकार करने को विवश कर दिया है कि राम केवल किसी कथा के नायक भर नहीं हैं बल्कि राम अखिल ब्रह्माण्ड नायक हैं जिनको स्वीकार करना प्रत्येक जीव के लिए अनिवार्यता है। श्री अयोध्या जी में चल रहा यज्ञ यद्यपि 22 जनवरी को पूर्ण हो जाएगा परन्तु संघ की आस्था यात्रा जारी रहेगी।

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