आज लोगों को राम-कृष्ण के आचरणों को अपनाने की जरूरत है - सन्त उमाकान्त जी महाराज

  • बाबा उमाकान्त जी ने बताये चारों राम के भेद- एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में लेटा, एक राम का सकल पसारा, एक राम सब जग से न्यारा

मुंबई (महाराष्ट्र)। बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कहा गया है- एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में लेटा। एक राम का सकल पसारा, एक राम सब जग से न्यारा।। जिनको जानकारी नहीं है वह तो दशरथ के बेटे को राम मान लेते हैं जो चले गए, वो केवल उन्हीं को सम्मान देते हैं। दूसरा राम मन को कहा गया है जो जीवात्मा के साथ लगा हुआ है। तीसरा राम निरंजन भगवान जिनको ईश्वर, खुदा, गोड अपनी-अपनी भाषा में लोगों ने कहा। चौथा राम सबके सिरजनहार सतपुरुष है; उस राम से मिलाने वाले भेदी गुरु की खोज करो। मूर्ति फोटो पूजने से आपकी श्रद्धा भाव भक्ति के अनुसार लाभ तो मिल जाएगा लेकिन जीवात्मा का कल्याण नहीं हो सकता।

सबको गुरु की जरूरत पड़ी। राम कृष्ण दोनों ने विद्या गुरु अलग- विश्वामित्र और सांदीपनि तथा आध्यात्मिक गुरु- वशिष्ठ और सुपच किये। कुछ न कुछ कर्म जान-अनजान में सब के बनते हैं। उसकी सफाई करना बहुत जरूरी होता है। इसलिए मन में आये अभाव को, कर्म को काटने के लिए सतसंग सुनने, सेवा करने, साधना करने या गुरु भक्ति की बातें करने की आदत बराबर डाले रहो। सन्त, समरथ सतगुरु की जरूरत है जो रास्ता बताकर जीवात्मा को उस मालिक तक पहुंचा दें, जन्म-मरण से छुट्टी दिला दें।

महापुरुषों का काम ही समझाने का होता है। अब तो उपदेश समझने वालों में ही गलत आदतें आ गई तो कैसे समझाएं। उदाहरण के लिए जो खुद नशेडी हो, वह उपदेशक, कथा वाचक, सतसंग करने वाला आदि दूसरों को नशे से दूर रहने के लिए कैसे कहे? तो उनके उपदेशों को बदल दिया लोगों ने और आसन इस तरह से कर दिया की जन्माष्टमी मना लो, राम विवाह, रासलीला, रामलीला आदि मना लो, जगह-जगह मंदिर बना दो, फूल-पत्ती चढ़ा दो तो आसान हो गया लेकिन उनके उपदेश को बताने की जरूरत है।

उन्होंने जनहित के लिए क्या-क्या काम किया, कितना त्याग किया, यह बताने की जरूरत है कि हम उनके वंशज हैं, हमको उनका अनुकरण करना चाहिए, उनके बताए हुए रास्ते पर हम चलेंगे, उनका बताया हुआ अच्छा काम हम करेंगे। आज केवल कृष्ण-राम कथा-चरित्र पढ़ने, केवल बाहरी क्रियाएं करने की बजाय राम-कृष्ण के उपदेशों को लोगों को बताने, उनका अनुसरण करने की जरुरत है। विचार करो, आज राम जैसे लोग और सती अनुसुइया सावित्री जैसी बच्चियां क्यों नही बन पा रही।

आजकल वेद न कोई पढ़ता, न कोई जानता है। आगे की जानकारी वेदों में भी नहीं है। गोस्वामी जी ने सबसे पहले लिखा - घट रामायण। यानी जो अंदर घट में होता रहता है, मानस में जो राम का चरित्र हो रहा है, वो। लेकिन लकीर के फ़क़ीर बने लोगों के विरोध की वजह से उन्होंने उसे गोपनीय कर दिया। फिर लिखा राम चरित मानस जिसके शुरुवाती भाग में बहलाने के लिए राम का किस्सा-कहानी लिखी और आखरी कांडों में आध्यात्मिक का वर्णन किया जिसे लोग समझ नहीं पाते। जिसने खुद नहीं देखा वो क्या बताएगा, लोग किताबों में ही उलझे रह गए। सिख भी किताब पढ़ने में ही रह गए जबकि वक़्त के गुरु को खोजने, उनके पास जाकर अपना कल्याण करने के लिए लिखा है।

देखो इस समय राम भगवान की चर्चा देश और विदेशों में खूब हो रही है लेकिन राम भगवान के बारे में जो उन्होंने लिखा कि वह भी नहीं समझ पाए इतनी बड़ी महिमा नाम में है। राम न सकहीं नाम गुण गाई। कहां लगी करूं मैं नाम बडाई। वह नाम जिसमे सब कुछ समाया हुआ है, जिससे सारे सृष्टि,अंड पिंड ब्रह्मांड जुड़े हुए हैं उसी नाम के बारे में उन्होंने कहा- कलयुग केवल नाम अधारा। सुमिर सुमिर नर उतराही पारा।। नाम लेतु भव सिंधु सुखाही। सुजन विचार करो मनमाही।। 

वह नाम जो राम भी उसके बारे में नहीं जान सके वह नाम क्या है मिलेगा कहां उन्होंने कहा- नाम रहा संतन अधीना। संत बिना कोई नाम न चीन्हा।। बगैर संत के नाम की पहचान नहीं हो सकती है उनके अधीन जो नाम हुआ करता है वही नाम समय-समय पर संत आते हैं।

यह जयगुरुदेव नाम किसी आदमी का नहीं, यह भगवान परमात्मा का नाम है। महापुरुष जब इस धरती पर आते हैं तो एक नाम को जगाते हैं जैसे त्रेता में राम नाम, द्वापर में कृष्ण, कलयुग में कबीर साहब ने सतसाहेब, नानक जी ने वाहेगुरु, शिवदयाल जी ने राधास्वामी नाम जगाया। अभी "जयगुरुदेव" नाम प्रभु का, गुरु महाराज द्वारा जगाया हुआ नाम है, मुसीबत में मददगार है। 

मुसीबत जब आये, जयगुरुदेव नाम बोलोगे तो मदद होगी, चाहे बीमारी हो चाहे लड़ाई झगड़ा हो चाहे घर में कोई टेंशन हो तकलीफ जब आवे तो जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोलना शुरू कर दो और फायदा देखो। राम कृष्ण ने बहुत समझाया, मैं भी लगातार समझा रहा हूं, नहीं समझ में आएगा तो विनाश अवश्यंभावी है।

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