उपभोक्ता आयोग ने एलआईसी पर ठांका साठ हजार का जुर्माना

भारतीय जीवन बीमा निगम

  • भारतीय जीवन बीमा निगम को ग्राहक के साथ सेवा कमी करना पड़ा भारी
  • आदेश का अनुपालन एक माह में करने का आदेश

अरबिंद श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ

बांदा। शहर विकास भवन ऑफिसर कालोनी निवासी राकेश कुमार जैन पुत्र राजेंद्र कुमार जैन ने जुलाई 2013 में कैलाश नाथ सोनकर शाखा प्रबंधक एलआईसी बांदा, मिथलेश कुमार वरिष्ठ मंडल प्रबंधक एलआईसी सिविल लाइंस इलाहाबाद, आदि को पक्षकार बनाते हुए उपभोक्ता संरक्षण कानून व्यवस्था में निहित प्रविधानो के तहत मामला दर्ज कराया गया था। परिवादी का कहना था कि उसने एलआईसी बांदा से 24 दिसंबर को अनमोल जीवन के नाम की पॉलिसी 20वर्षा के लिएं ली थी। जिसका प्रीमियम 3470 प्रतिवर्ष था। जिसके बदले में मेरे जीवन का बीमा सामान्य मौत पर 5 लाख रुपए और दुर्घटना में 10लाख रुपए बीमा कंपनी उत्तराधिकारी को देगी।

वादी का कहना है कि बीमा कंपनी ने 2009 से प्रीमियम लेना बंद कर दिया गया। 2011 को मौखिक रूप से बताया गया कि कंप्यूटर डाटा में त्रुटि बस डाटा बदल गया है जिससे टेबिल 164 के स्थान पर 149 हो गई। और 20 वर्ष के स्थान पर 18वर्ष हो गई। बीमा कंपनी की इस घोर सेवा में कमी के कारण वादी जो की आयकर दाता है और उत्तर प्रदेश सरकार में राजपत्रित अधिकारी भी है, कब 2008 से लेकर अब तक जीवन का बीमित होने का रिस्क कवर नहीं चल रहा है। बीमा कंपनी का यह कृत्य लापरवाही और ग्राहक सेवा के साथ गैर जिम्मेदाराना है। वादी ने अपने वाद दायर याचिका में 4 लाख रुपए का मानसिक तनाव के लिए और 2024 तक पोलिसी को अनवरत चालू रहने का अनुरोध किया। फोरम ने बीमा कंपनी को नोटिस दिया और जवाब मांगा। 

एलआईसी का कहना है कि वादी का वाद बलहीन है और निरस्त किए जाने योग्य है। जिला उपभोक्ता संरक्षण के अध्यक्ष तूफानी प्रसाद और अनिल कुमार चतुर्वेदी ने दोनो पक्षों की बहस सुनी। आठ पृष्ठ का आदेश दिया कि विपक्षी एलआईसी द्वारा ग्राहक सेवा में कमी की गई हैं। विपक्षीगण को आदेश दिया गया है कि वह परिवादी की पॉलिसी को प्रीमियम की राशि 3470 लेकर 24 दिसम्बर 2024 तक प्रचलित करे। साथ ही मानसिक तनाव के लिए 50 हजार रुपए और 10 हजार मुकदमा दायर करने पर हुए खर्च के लिए एक माह के अंदर अदा करना होगा। उक्त जानकारी रीडर न्यायालय स्वतंत्र रावत ने दी।

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