बाबा उमाकान्त जी ने बताये लोकतंत्र बहाल करने के लिए बाबा जयगुरुदेव के घोर त्याग और तपस्या को


  • वैचारिक क्रांति का बिगुल बजाय बाबा जयगुरुदेव ने
  • नसबंदी, गर्भपात अमानवीय है

उज्जैन (म.प्र.)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, लोकतंत्र सेनानी, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 23 अप्रैल 2023 प्रातः उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी ने बड़ा मेहनत किया। भविष्य के बारे में भी बताते रहते थे। लोगों में उनके प्रति प्रेम था। जिस देश में रहो, जहां का अन्न खाओ, उस देश-धरती के वफादार रहो। इसलिए गुरु महाराज लोगों को बताते समझाते रहते थे। बुद्धि खराब करने वाली चीजों को छुड़ाने, शाकाहारी नशामुक्त रहने की प्रेरणा, संदेश शुरू से ही देते रहे। लेकिन शराबी मांसाहारी बुरा कर्म करने वाले को मना करो तो उसे नाराजगी हो जाती है।

सन्तों का काम आगाह करना है जिससे उसका और दूसरे का नुकसान न हो। मुखिया ऐसा बना दिया जाए जो ऐसा निर्देश दे दे या काम कर दे की बहुत से लोगों की जान खतरे में पड़ जाए इसलिए ये तो बताना ही पड़ता है। गुरु महाराज उस समय भविष्यवाणियां किया करते थे। सता पक्ष वाले, किसान, मजदूर, अधिकारी आदि सबको बताया, आगाह करते थे। आजादी के पहले भी बताया था कि राजतंत्र खत्म हो जाएगा, प्रजातंत्र आ जाएगा आदि। लोग नाराज हुए कि ये हमारा राज खत्म कर देने की बात कह रहे हैं लेकिन सही बात तो गुरु महाराज लोगों को बता ही दिया करते थे।

विप्लवकारी रेखा

आपातकाल के दौरान उन्हें जेल जाना पड़ा था। गुरु महाराज बताने लग गए कि उस समय कि बेवा (विधवा) प्रधानमंत्री के हाथ में ऐसी विप्लवकारी रेखा है कि बेगुनाहों लाखों लोगों की मौत होगी। इसी पर चिढ़ गई। उसके क्रियाकलाप से भी लोग नाराज होने लग गए। भारत का इतिहास बताता है कि जब-जब अत्याचार अन्याय बढ़ा, लोग बैठे नहीं रहे, आवाज उठाए। अंग्रेजों का अत्याचार अन्याय बढ़ने पर भगत सिंह चंद्रशेखर अशफाक उल्ला खां सुभाष जैसे वीर बैठे नहीं रहे। शांति का पाठ पढ़ाने के लिए महात्मा गांधी निकले।

वैचारिक क्रांति

गुरु महाराज वैचारिक क्रांति यानी विचारों में परिवर्तन लाना, उस पर विश्वास करते थे। अन्य सारी क्रांतियों से ज्यादा पॉवर वैचारिक क्रांति में है। आजकल चल रहे प्रचार अभियान में वैचारिक क्रांति लानी यानी विचारों में परिवर्तन ही लाना है। हाथ जोड़कर विनय हमारी, तजो नशा बनो शाकाहारी। छोड़ो व्यभिचार बनो ब्रह्मचारी, सतयुग लाने की करो तैयारी। 

ऐसा सन्देश लोगों में बदलाव लायेगा क्योंकि आने वाला समय, मांसाहारी शराबी जुआरी व्यभिचारी खूनी कतली हिंसक प्रवृत्ति लोगों को सताने लूटपाट ठगने वाले लोगों को कबूल नहीं करेगा, ऐसे लोग रहेंगे नहीं। यह मनुष्य शरीर, मानव मंदिर कुछ समय के लिए और भगवान की प्राप्ति के लिए मिला है। दुबारा जल्दी मिलने वाला नहीं है। तो बेचारे फंस जाएंगे, अकाल मृत्यु में, प्रेत योनि में जाएंगे, जहां बहुत भटकना पड़ता है, बड़ी मार पड़ती है, बहुत तकलीफ होती है तो उनको तो बचाना है।

नसबंदी

गुरु महाराज जी ने भी वैचारिक क्रांति शुरू किया, लोग विचार करने लग गए। अगर आजाद, अशफाक, राजेंद्र, सुखदेव जैसे वीर देश के लिए फांसी के फंदे को कुबूल कर सकते हैं तो हमको भी आगे बढ़ना चाहिए। कुछ सताधारी लोग बोले नहले पर दहला रखना पड़ेगा। उनकी योजना के खिलाफ अपने गुरु भक्तों ने भी आवाज लगाया कि नसबंदी, गर्भपात अमानवीय है। मनुष्य शरीर उस प्रभु ने बनाया है, सृष्टि को बढ़ाने के लिए बनाया है, इसको तुम क्यों बंद कर रहे हो? इससे बीमारियां फैलेंगी, तकलीफें बढेंगी। ये हालत थी कि लोगों को पकड़-पकड़ कर नसबंदी कर देते थे। 

दूध साग सब्जी बेचने वाले डर के मारे शहरों में जाते नहीं थे कि कहीं कोटा पूरा करने में हम भी पकड़ में न आ जाए। पापी पेट के लिए, नौकरी बचाने के लिए उनके शासन में रहने वाले अधिकारी कर्मचारीयों के लिए उस समय टारगेट रखवा दिए गए थे कि (कम से कम) इतने लोगों की नसबंदी करेंगे तो ही पोस्ट पर रहेंगे नहीं तो नौकरी से सस्पेंड, बर्खास्त कर दिए जाएंगे। तो बेचारे कोटा पूरा करने के लिए पकड़ते थे। लेकिन जब पब्लिक विरोध करने लग गई तब वह लोग भी दब गए, कागज में ही कोटा पूरा कर देते थे। इसी वजह से (कागजी) नसबंदी के बावजूद बच्चे पैदा हो गए। उस समय स्थिति बड़ी खराब थी। 

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