बाबा उमाकान्त जी ने बताया गुरु नानक जी और राजा जनक द्वारा नरकों के जीवों को बचाने के प्रसंग

महाराज जी ने किया जीव के अंत समय, यमपुरी की यात्रा, यमपुरी और वहां कर्मों का हिसाब होने का इशारों में वर्णन

उज्जैन (म.प्र.)। इस समय प्रभु के जगाये हुए, प्रभु की पूरी ताकत वाले नाम जयगुरुदेव का प्रचार करने वाले, पूरे नरक को एक ही बार में पुन: खाली करने का सामर्थ्य रखने वाले, जीवों को नरकों में जाना ही न पड़े इसके लिए पहले से जगाने चेताने वाले, और नरक ले जाने वाले कर्म जो अब तक बन चुके हैं, उन्हें काटने ख़तम करने के उपाय बताने वाले, जीते जी साधना द्वारा जीवात्मा को उपरी लोकों में ले जाने का मार्ग नामदान बताने वाले- तभी तो यमपुरी का आँखों देखा वर्णन किया जा सकता है, इस समय के जीते जागते युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 9 मार्च 2020 को उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु नानक जी का एक जीव नरकों में फंस गया था। सतगुरु जिस जीव को पकड़ते हैं, छोड़ते नहीं है। 

चाहे पार होने में चार जन्म लग जाये पर छोड़ते नहीं है। नानक जी पूरे सन्त थे। तो उसे निकालने के लिए गए, पैर लटकाए, बोले मेरे पैर का अंगूठा पकड़ कर के तू बाहर आजा। तो उसने क्या किया? आवाज लगा दिया कि जितने भी लोग नरक में हो, सब लोग एक-दूसरे के पैर का अंगूठा पकड़ो और मेरा अंगूठा पकड़ो, मैं गुरुजी का अंगूठा पकड़ने जा रहा हूं, निकल चलो, मौका अच्छा है। नानक जी ने ऐतराज भी किया कि तू यह क्या कर रहा है? (मैं तो तेरे लिए आया और तूने सबका ठेका ले लिया) तब उस परमार्थी (जो दूसरों का भला करे) भगत ने कहा, आप जैसे समरथ सन्त नर्क में आए और इन जीवों का उद्धार नहीं हुआ तो इनको कौन पार करेगा? नानक जाए अंगूठा बोरा, सब जीवों का किया निबेरा।

विदेही राजा जनक ने अपनी ढाई घड़ी की साधना देकर नरकों के जीवो को बचाया था

कर्मों की धाराएं लग जाती है। 42 प्रकार के नर्क हैं। (कर्मों के अनुसार) उन नरकों में जीव डाल कर काटे सड़ाये तपाए गलाए जाते हैं। टट्टी पेशाब मवाद आदि के अलग-अलग नरक हैं, पड़े रहो, कोई सुनवाई होने वाली है? कोई उधर नरकों की तरफ जाता ही नहीं। कभी कोई सन्त चले गए, दया कर दिया तो निकल आए और नहीं तो उसी में पड़े रहो। ऐसा बहुत कम हुआ है। राजा जनक ने एक बार मार खाने, तकलीफों से जीवों को बचाया था। नरकों में जब मार पड़ती है तो सो-सौ कोस तक चिल्लाने की आवाज जाती है। राजा जनक उधर से जा रहे थे, देखा चिल्ला रहे, तड़प रहे हैं। यमराज से पूछा कि कैसे इनको छुटकारा मिलेगा? बोले, कोई अपनी साधना में से कुछ हिस्सा इनको दे दे तब तो छुटकारा हो सकता है। तब उन्होंने अपने ढाई घड़ी की साधना दिया और उन जीवों को (नरक से) छुटकारा मिला।

हजारों योजन ऊपर यमपुरी है

महाराज जी ने 23 अक्टूबर 2018 लखनऊ में बताया कि मरने के बाद जीवात्मा को पिशाच के शरीर, जो मनुष्य शरीर जैसा ही दिखता है, उसमें बंद करके, हजारों योजन ऊपर यमपुरी में ले जाते हैं। वहां एक हजार योजन सोने की दीवार और उसमें छियासी हजार योजन ऊपर। यहां तो आप इंच टेप से मील फर्लांग नापते हो, वहां योजन चलता है। चार कोस का एक योजन होता है। हजारों योजन ऊपर यमपुरी है। वहां ले जाते हैं। तीन दरवाजे हैं। पूरब, उत्तर और दक्षिण की तरफ। पूरब की तरफ के दरवाजे के वहां रंग बिरंगी पताकाएं फहरती रहती हैं, अप्सराओं के गंधर्व नृत्य हुआ करते हैं, देवात्माएँ उधर से जाती हैं। उत्तर के दरवाजे के वहां मस्ताना बाजा बजता रहता और ऋषि-मुनियों का जमावड़ा रहता है। दक्षिण की तरफ भूत प्रेत पिशाच जिन्न आदि जमा रहते हैं। 

वहां से यमपुरी का रास्ता बड़ा बीहड़। बड़े-बड़े गड्ढे, खंदक, पहाड़ियां, मच्छर मक्खी, कटे हुए पत्थर, तपता हुआ बालू, घसीटते हुए उधर से ले जाते हैं। जिन जीवों को मार कर खाया था, वो वहां पर बदला लेने के लिए मौजूद रहते हैं। पंजा नाख़ून मार देते, खून से लथपथ जीव को ले जा कर यम के दूत यमराज के सामने डाल देते हैं। हिसाब होने में देर नहीं लगता। पूरे जीवन का रिकॉर्ड उसके पास होता है। कंप्यूटर से भी तेज उनके बहीखाते में देख लेते हैं। बड़े-बड़े पन्ने, सुनहरे रंग के, बहुत सुन्दर लिखावट जिसको आप पढ़ नहीं सकते हो। यमराज के पेशकार चित्रगुप्त पढ़ कर तुरंत बता देते हैं कि कर्म कितने अच्छे और कितने बुरे किये। अधिकांश बुराईयाँ होती है, कुछ अच्छे कर्म होते भी हैं तो वो बुरे कर्मों से दब जाते हैं।

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