सन्त विधि के विधान को भी टाल देते हैं- सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज

सेवा से जी नहीं चुराना चाहिए

उज्जैन (म. प्र.)। अपने भक्तों के लिए विधि के विधान को भी टाल देने वाले, जो प्रारब्ध में नहीं है उसे भी अब तो रूटीन में देने वाले, छोटी चीजों में न फंसने और बड़ी चीज पकड़ने की शिक्षा देने वाले, सेवा का महत्त्व समझाने वाले, वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 31 दिसंबर 2022 प्रातः उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गाय और बैल की योनी के बाद मनुष्य शरीर मिलता है। लेकिन अगर सन्तों की दया हो जाए, समरथ सन्त मिल जाए तो जो विधि का विधान है, वह भी टल जाता है। कैसे? जैसे कोई कर्मों के अनुसार पेड़ बनाकर के खड़ा कर दिया गया। 50 साल-100 साल खड़ा रहेगा, इसको सजा मिलेगी। और अगर सन्त ने उस पेड़ का दातुन कर लिया, दया हो गई तो उसको भी मनुष्य शरीर मिल जाता है। काल का यह विधान है कि काल के नियम का पालन मनुष्य शरीर में करना ही पड़ता है लेकिन वो भी सन्तों की इच्छा को टाल नहीं सकता है। सन्तों से उसका भी फायदा होता है। सन्तों के रहने से वह निश्चिंत भी रहता है। जैसे अपने घर पर कोई गनर पुलिस वाला आया तो वहां पर बंदूक लेकर के रात को सो गया तो निश्चिंत रहता है कि बंदूक वाला हमारे घर की रखवाली कर रहा है तो निश्चिंत होकर सोता है नहीं तो रात भर डंडा लेकर के पहरा देता है। कहने का मतलब यह है काल भी खुश रहता है। तो नियम होता है लेकिन नियम को भी टाल देते हैं, यह टल जाता है।

सेवा से कम, भजन से ज्यादा कर्म कटते हैं

महाराज जी ने  31 दिसंबर 2022 दोपहर उज्जैन आश्रम में बताया कि सेवा से और भजन से कर्म कटते हैं। सेवा से कम कटते हैं, भजन से ज्यादा कटते हैं। तो जब भजन, ध्यान ,सुमिरन करने लगता है तब ये तकलीफें अपने आप खत्म हो जाती है, अचानक खत्म होती है। इससे कर्म जलते हैं। तो बराबर सेवा और भजन दोनों काम करना चाहिए। लेकिन जो लोग इस तरह से आते हैं कि हमारी बीमारी ठीक हो जाए, मुसीबत चली जाए, हमारा लड़ाई झगड़ा मुकदमा खत्म हो जाए, लड़का पास हो जाए, नौकरी लग जाए, प्रमोशन हो जाए आदि उस हिसाब से जो लोग आते हैं, उनको भी नामदान मिल जाता है, वह भी नाम दान ले लेते हैं। लेकिन समझते नहीं है तब तक करते नहीं है।

गुरु महाराज से कैसे प्रार्थना करनी चाहिए

महाराज जी ने 24 अप्रैल 2023 प्रातः नवसारी (गुजरात) में बताया कि गुरु को कभी भी मस्तक से उतरने नहीं देना चाहिए। और गुरु से ही प्रार्थना करनी चाहिए कि गुरु महाराज आप हमारे मन से, तन से, शरीर से सेवा करवा लो। आपने जो धन दे रखा है, जो हमारा बजट है, बच्चों को खिलाने के बाद, घर के देखरेख में खर्च करने के बाद, जो बचा है, उससे हमारे धन की सेवा करवा लो। हमारे मन से आप सेवा करवा लो। मन को दुनिया की तरफ से हटा करके इसमें लगा दो। गुरु को जब हमेशा याद करते रहोगे तब वह आपसे करवा लेंगे। नहीं तो आप नहीं कर पाओगे। आप यह पक्की बात समझो। तो सेवा करनी चाहिए। सेवा से कर्मों की सफाई होती है। बुरे कर्म सेवा के द्वारा नष्ट ख़त्म होते हैं। और जब जीव कर्म हीन हो जाता है, जब सभी गुणों रजोगुण तमोगुण सतोगुण से हीन होता है, त्रिया ताप ख़त्म होते हैं तब यह जीव ऊपर जा पाता है। नहीं तो यहां ऐसी मोटी गाँठ में बंधा हुआ है कि गांठ खुलना ही बड़ा मुश्किल है। इसीलिए बराबर सेवा और भजन करने की बात गुरु महाराज ने जो बताया है, आप जो गुरु महाराज के प्रेमी हो तो बराबर करते रहो।

सेवा से जी नहीं चुराना चाहिए

महाराज जी ने 1 जनवरी 2023 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि इच्छा करते ही वह चीज हाजिर हो जाती है। अणुमा, महिमा, लघुमा, गरीमा आदि सब सिद्धियां है। पांच सिद्धि नौ निधियां। यह सब कदम चूमती हैं। यह हाथ जोड़कर के साधकों के, सन्तों के प्रिय जीवों के सामने खड़ी रहती है। हुकुम करिए, सेवा का मौका दीजिए। क्योंकि सेवक तो हमेशा हाथ जोड़े खड़ा रहता है कि सेवा का अवसर मिले। आप बहुत से लोग सेवा से जी चुराते हो। (सोचते हो कि) अरे वह (कोई और व्यक्ति) (ये सेवा) कर लेता तो ठीक था, हमारी तरफ न देखते तो अच्छा था। हमसे कुछ और (आसान सेवा) करने के लिए कह देते। अरे सतसंग में नहीं जायेंगे, कहीं हमारे लायक कोई काम न बता दें। आप तो जी चुराते हो लेकिन आपको यह नहीं मालूम है कि मालिक की दया आपके ऊपर हो रही है और आप के ऊपर सेवा मिलने की दया कर रहे हैं और उस समय को आप निकाल दे रहे हो, काट दे रहे हो।

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