- समझ में आने पर सन्तमत मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद है
- लोक-परलोक वक्त के गुरु बनाते हैं इसलिये उनका ध्यान करना जरूरी है
देपालपुर, इंदौर। भारत जैसे धर्म परायण देश में ऋषि, मुनि, योगी, योगेश्वर, सन्तों का प्रादुर्भाव हमेशा से होता रहा है। वक़्त के जगाए हुए प्रभु के नाम जयगुरुदेव के प्रणेता निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के जानशीन उत्तराधिकारी इस समय के त्रिकालदर्शी सन्त पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने देपालपुर इंदौर में 10 जनवरी 2022 को दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेम पर प्रसारित सन्देश में बताया कि संतमत सबसे ऊंचा मत है लेकिन यह थोड़ा देर में लागू हुआ। जब इस धरती पर सन्तों का प्रादुर्भाव हुआ, संत आए तब उन्होंने अपने मत को प्रगट किया, लोगों को बताना-समझाना शुरू किया।
सन्तमत अगर समझ में आ जाए तो मनुष्य के लिए बहुत फायदेमंद है
अन्य जो मत हैं वे बहुत पहले से चले आ रहे हैं। संतमत का विस्तार उस गति से नहीं हुआ जिस गति से अन्य मतों का विस्तार हुआ है लेकिन यह संत का जो मत है, विचार है, रास्ता है, यह मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद है। समझने की बात है, अभी अगर समझ में आ जाए तो सब काम बन जाए।
पहले के पूजा पाठ उपासना आदि वाले मतों से संतमत की साधना बहुत आसान है
पहले के पूजा-पाठ, उपासना आदि मतों में तकलीफ ज्यादा होती है लेकिन इसमें (सन्तमत में) कोई तकलीफ नहीं। उसमें जैसे सत्यनारायण, भागवत, राम-कृष्ण आदि कथा अगर कहलवानी है तो सामान की ज्यादा जरूरत पड़ती है। पूछा जाए इतने सामान की क्या जरूरत है? कहते हैं इसके बगैर यज्ञ, कथा पूरा नहीं होगा, फूल-पत्ती, मेवा सब लाना पड़ेगा।
जैसे बच्चे का प्रारंभिक पाठ कठिन होता है ऐसे ही जब संतमत जब समझ में आ जाता है इसी से लोक-परलोक दोनों बन जाता है
आप समझो एक तरह से प्रारंभिक पाठ है। प्रारंभिक पाठ जैसे बच्चे के लिए कठिन होता है, ऐसे ही लेकिन यह जब समझ में आ जाता है तो कोई सामान की जरूरत ही नहीं है, कोई दौड़-धूप की जरूरत नहीं है, शरीर को ज्यादा तकलीफ देना भी नहीं है, आराम से लोक-परलोक भी बन जाता है। यहां आदमी के खाने-पीने की कमी नहीं होती है। मान-सम्मान, इज्जत मिल जाती है, अगर कोशिश करता है तो ऊंची कुर्सी भी मिल जाती है। प्रारब्ध के अनुसार धन भी मिलता है, दुनिया की चीजें मिलती हैं। लोक भी बनता है और परलोक भी बन जाता है। जिस काम के लिए मनुष्य शरीर मिला, जीवात्मा के कल्याण के लिए इसका भी कल्याण हो जाता है, इसकी भी मुक्ति-मोक्ष हो जाता है। यह फिर लौट कर के इस दुनिया संसार में नहीं आती है, जन्मना-मरना नहीं पड़ता है लेकिन जब समझ में आ जाए।
रे मन मुसाफिर निकलना पड़ेगा। काया कुटी खाली करना पड़ेगा।।
देखो ये जो प्रार्थनायें चेतावनी हैं, यह पहली सीढ़ी है। इससे लोगों के अंदर जागृति जागरण पैदा होता है। जो चेतावनी प्रार्थनाएं होती हैं उससे जानकारी मिलती है। जिनकी जो प्रार्थना की जाती है उनका ध्यान भी करना पड़ता है। जिस तरह की प्रार्थना की जाती है, वह उस तरह से फल देते है, दया करता है, देखते हैं।
गुरु कोई हाड़-मांस के शरीर का नाम नहीं, गुरु एक पावर, शक्ति होती है
सन्तमत में सबसे पहले- गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छूटना। सभी मतों में गुरु का स्थान ऊंचा स्थान है। गुरु कोई हाड मांस के शरीर के होते नहीं है। गुरु एक पावर-शक्ति होती है। शक्ति जो होती है, अंतर में होती है।
लोक-परलोक वक्त के गुरु बनाते हैं इसलिये उनका ध्यान करना जरूरी है
जैसे खेत में सिंचाई के लिए आप 1-2 हॉर्सपावर की मोटर लाते हो, ऐसे ही जो समरत गुरु सन्त होते हैं, संतमत को समझाते हैं। जीवात्मा को परमात्मा तक पहुंचाने का रास्ता उन्हीं को मालूम होता है, वही बताते हैं। इसलिए लोक और परलोक दोनों बनाने के लिए सबसे पहले गुरु की प्रार्थना की जाती है, गुरु का ध्यान किया जाता है।
0 टिप्पणियाँ
Please don't enter any spam link in the comment Box.