गुरु गोरखनाथ-गोपीचंद के प्रसंग से समझाया कि भक्तों की रक्षा गुरु कैसे-कैसे करते हैं

कम खाओ, गम खाओ, लंगोटी के मजबूत रहो, भजन करो, शक्ति अर्जित करो और जिस उद्देश्य के साथ नामदान लिया है, उसे प्राप्त करो

अपने रिश्तों को पवित्र रूप में, समाज के नियम के अनुसार, गृहस्थ आश्रम में निभाओ

सीकर (राजस्थान)। इस दु:ख के संसार में आपको दुबारा आना न पड़े उसका स्थाई उपाय बताने वाले, द्रष्टांत के माध्यम से बड़ी गहरी बात को समझा देने वाले, वर्तमान में चलते भारी काल और माया के वेग से बचने के लिए पाल बाँधने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 11अगस्त 2021 सांय सीकर (राजस्थान) दिये व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कई राजा ऐसे हुए जिनका इतिहास में नाम महात्माओं की श्रेणी में आ गया। उसमें राजस्थान के एक राजा गोपीचंद भी हैं। मेहनत न करने, हराम का बढ़िया राजसी-  भोग खाने, पहनने, रहने, प्रजा का कमाया हुआ खाने, से राजा लोग भोगी होते हैं। उनका दिल-दिमाग भी भोगी हो जाता है। चाहे राजा हो या महात्मा, प्रजा का धन हजम करना बड़ा मुश्किल होता है। अच्छे कर्म होने पर महात्मा, मठाधीश, राजा बना दिये जाते हैं। तो राजा गोपीचंद भोग में मस्त रहता था। 

लेकिन उनकी मां (राजमाता) बड़ी धार्मिक थी। देवियों को कर्म कम लगता है क्योंकि घर में रहती थी। मां धार्मिक इसीलिए थी क्योंकि राजमाता प्रजा को अपना बेटा समझकर उनका ध्यान रखती, परवरिश करती थी। और गोपीचंद को धन, मान-सम्मान की चाह थी तो प्रजा को सताता, लूट खसोट कर मंगवाता, मारपीट अत्याचार करता था। मां बराबर समझाती रहती थी। धीरे-धीरे बात समझ में आई। जब कोई भी इस दुनिया की चीज साथ नहीं जाएगी, मृत्यु निश्चित है। बाप दादा पूर्वज सब राजा थे लेकिन सब चले गए तो हम क्या लेकर जाएंगे? तो हमको कुछ अपनी आत्मा के लिए योग साधना करनी चाहिए, संकल्प बना लिया। उस समय पर ज्यादातर लोग घर छोड़कर साधना करने जाते थे। अब इस कलयुग मलीन युग में आसान कर दिया गया। घर बाल-बच्चे को छोड़ने की जरूरत नहीं है। गृहस्थ आश्रम में ही कर लो। पहले गुरु लोग कपड़ा जूता चप्पल उतरवा देते थे, पैदल चलाते, जमीन पर सुलाते, रुखा-सूखा खिलाते थे तब साधना कराते थे। और यहां? है तो अच्छा- खाओ, पहनो, घर में रहो लेकिन एक घंटा सुबह-शाम मालिक को जरूर याद करो। तो गोपीचंद घर छोड़ कर निकल गया, उसे योग सिखाने वाले महात्मा का पता लगाने लगा। 

लोगों ने बताया योगी गोरखनाथ गोरखपुर में रहते हैं। योग साधना कराते हैं। योग का रास्ता बता सकते हैं। उनके पास पहुंचा, दर्शन, प्रार्थना किया। गोरखनाथ ने अपने मन में सोचा, भोगी राजा योगी कैसे बनेगा? कहां गया हिंसक जल्दी झुकता नहीं है। उसमें जल्दी दया, सच्चाई, सेवाभाव नहीं आएगा, अनुराग नहीं बढ़ेगा तो प्रभु की प्राप्ति नहीं हो सकती है। है तो कठिन लेकिन कोशिश करते हैं। कहा, राजा पहले तू सोच ले। जब तक आदमी किसी काम के लिए दृढ़, पक्का नहीं होता, उसमें सफल नहीं हो सकता है। बोला तू मजबूती लेकर आ। गोपीचंद बोला मैं मजबूती लेकर ही आया हूं। अब नहीं लौटना है। त्याग आप जैसा कहोगे, वैसा ही करूंगा। बोले उतारो राजसी वस्त्र, पहनो गेरुआ वस्त्र। तुमड़ी उठाओ और उसी में भीख मांग कर आश्रम चलाओ। बोला सब आश्रम चलवा दूंगा। भूल गया, अपने को राजा ही समझ रहा था। 

आर्डर कर दूंगा, गाड़ीयों पर लद कर आ जाएगा। बोले राज करेगा या योग करेगा? फिर याद आया, कहा जैसा आप कहो, वैसा करेंगे। बोले, भीख मांग करके यहां भेज। यह आश्रम तेरे को चलाना है। राजा का दरवाजे-दरवाजे भीख मांगना मामूली बात नहीं। जिन्होंने अपना आपा खो दिया कि मैं क्या हूं, वही सफल हुए। गोपीचंद निकल पड़े, भीख मांग-मांग कर आश्रम पर भेजने लगे। एक दिन राजदरबार की तरफ चले गए। सोचा चलो रानियों से ले आए। रानियों ने देखा अब यह हमारे किसी काम का नहीं, अंदर चली गई। दरवाजा बंद कर लिए। निराश हुआ, झटका लगा, बोला हमको तो इसी रास्ते में तरक्की करना है। फिर मां के पास गया।

मां देख के मुस्कुराई, बोली, तू योगी है और मैं गृहस्थ हूं। मैं तुझको क्या उपदेश कर सकती हूं? लेकिन मैं तुझको ऐसी भिक्षा देना चाहती हूं जो तेरे काम आवे। तुझको वो धन नहीं दूंगी जो खर्च हो जाए, अन्य लोग उसका उपयोग करें। तेरे उपयोग में आने वाला धन देना चाहती हूं। हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, बताइए। बोली, स्वादिष्ट भोजन करना, मखमल जैसे गद्दे पर सोना और किले के अंदर रहना। तब गोपीचंद बोला मां! तेरे उपदेश से ही मैंने राजपाट, गृह त्यागा, योगी बना और तू मुझे फिर उसी में फंसाना चाहती है। जंगल में खान ये सब मिलेगा? 

मां ने समझाया स्वादिष्ट भोजन खाने, मखमल पर सोने और किले में रहने का अर्थ

मां बोली, तू मेरी बात नहीं समझा। तेरा मन संकल्प-विकल्प करेगा, लेकिन जो लाइन तूने पकड़ी है, उसी लाइन पर चलना, बदलाव मतलब लाना। खूब योग साधना करना, भूख लगने पर (कम) खाना, गुरु के आदेश का पालन करना। कर्मों को काटने के लिए उन्होंने पहले तेरे से भीख मंगवाई है। जब तेरा अंत:करण साफ हो जाएगा, तुझमें निर्मलता आ जाएगी तब वह दया करेंगे। जब खूब भूख लगे तो सात दिन की सूखी रोटी भी पूआ पुलाव मीठा से अच्छा स्वाद देगी, तू बड़े चाव से, प्रेम से उसको खा लेगा। जब खूब नींद आये, आंख बंद होने लगे, शरीर झुकने लग जाए तब तू जहां पर साधना में बैठना, वहीं सो जाना। वहां अगर कंकड़ पत्थर भी होंगे तो तुझको मखमल के गद्दे पर सोने जैसा आनंद आएगा, जब गहरी नींद में सोएगा। 

किले के अंदर रहने का मतलब यह है कि गुरु की जो मर्यादा, सीख है उसी सीख के अंदर रहना। जो उन्होंने मेहनत ईमानदारी चरित्रवान रहने का बताया उसी में रहना। क्योंकि अगर तू उसी (राजा की) तरह से बैठकर खाने लग जाएगा तो तेरा दिल-दिमाग पहले की तरह हो जाएगा। और तेरे पास जब सिद्धि आएगी और उस सिद्धि से लोगों का काम करेगा, दु:ख दूर करेगा तब तेरे ऊपर (चेतन माया का) हमला होगा क्योंकि जवान लड़कियां औरते भी आएंगी। इसलिए तू मर्यादा से अलग मत होना। मर्यादा के अंतर्गत ही रहना, गुरु को जब तू मस्तक पर सवार रखेगा तब तेरा कोई कुछ नहीं कर सकता है। कहां गया है- गुरु माथे पर राखीये, चलिए आज्ञा माहि, कहत कबीरा ता दास को, तीन लोक भय नाही। 

गुरु आदेश के पालन में लगने वाले को कोई डर नहीं होता, उसकी रक्षा तो गुरु पल-पल करते हैं। जिधर भी भक्त चलता है, उसके पैरों के नीचे भगवान का हाथ होता है। कहा मां! ऐसा ही करूंगा, उसी तरह से करूंगा। अब हमको उसी तरह से आशीर्वाद दो जैसे जब मैं घर से आपका पैर छूकर के योग साधना के लिए निकल पड़ा था और आपकी आंखों में आंसू तक नहीं आया। आप चाहती तो हमको अपनी शक्ति से वापस बुलवा सकती थी लेकिन आपने त्याग किया। मैं भी उसी तरह से त्याग करूंगा। 

ये सब आपको क्यूँ सुनाया जा रहा है?

राजा तो बहुत हुए लेकिन सबके नाम नहीं हैं। यह दृष्टांत इसलिए सुनाया जाते हैं कि आपके समझ में कोई बात आ जाए। कम खाओ, गम खाओ, लंगोटी के मजबूत रहो और भजन करो, शक्ति को अर्जित करो। जिस लक्ष्य उद्देश्य के साथ आपने नामदान लिया है, उस उद्देश्य को पूरा करो और वो काम करो कि इस दु:ख के संसार में आपको दुबारा आना न पड़े। ये तभी संभव है जब इस घोर कलियुग में माया के, काल के प्रभाव से बचोगे। काल और माया का बड़ा जोर चल रहा है, आपको कभी भी परमार्थ के रास्ते से गिरा सकता है। इसलिए दोनों को सम्मान इज्जत दो लेकिन आप उसमें फंसो नहीं। आपका जो रिश्ता है, समाज के रिश्ते को, पवित्र रुप में, समाज के नियम के अनुसार, गृहस्थ आश्रम में आप निभाओ।

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