प्रसाद के बदले में कोई कीमत नहीं ली जाती है : बाबा जयगुरुदेव जी



लगातार साधक साधना करता रहे तो जमीन जाग्रत हो जाती है

जागृत जमीन का असर कैसे खत्म हो जाता है

उज्जैन आश्रम जिनके सतसंग करने से भूमि जाग्रत हो जाती है, जो अपने गुरु की दया लेकर अब प्रसाद बना कर जीवों के दुखों को दूर कर रहे हैं, जिनका बावल आश्रम, रेवाड़ी हरियाणा स्थान से लोगों के दुःख दर्द को दूर करने की योजना अब बाबा जयगुरुदेव जी के चिन्ह मंदिर के रूप में फलीभूत होती दिखाई दे रही है ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने 1 जनवरी 2023 प्रातः सूरत (गुजरात) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि बताया कि जहां साधना होती है और ऊपर से धार उतरती है, तो वो  प्रभु की धार मनुष्य शरीर में से होकर के जहां भी जमीन तक जाती है उस जमीन की भी जागृति हो जाती है। लेकिन जब साधक वहां लगातार साधना करता रहे तब। जिनकी साधना बनती है जिसके अंदर में प्रकाश आता है, वह जब शरीर के अंदर से होकर के धरती में जाता है तो वह धरती भी जग जाती है। और अगर वहां बंद कर दिया गया, और नहीं वहां हुआ तो कुछ समय बाद इस परिवर्तनशील संसार में पहले की तरह वह धरती फिर से हो जाती है।

जागृत जमीन का असर कैसे खत्म हो जाता है

बाबा उमाकान्त जी ने 1 सितंबर 2021 प्रातः दईजर आश्रम जोधपुर में बताया कि जमीन का असर होता है। जमीन के असर को लोग अगर खत्म न करें तो बहुत समय तक असर रहता है। लेकिन वहां पर जब पाप होने लगता है, कैसा पाप? लूट-खसौट, मारकाट, दिल दुखाने का पाप, उसी योग से स्थान पर जब भोग होने लगता है तो वह स्थान दूषित हो जाता है। देखो जब तक सन्त रहे, वह स्थान जागृत रहा। लेकिन जब लोगों ने पंथ बनाया, उनके उद्देश्य को छोड़ा, रास्ते से जब अलग हुए, जगह जमीन मठ मंदिर के चक्कर में लोग आ गए तो कुछ समय के बाद उस स्थान का महत्व खत्म हो गया। इतिहास उठाकर देख लो, खत्म हो जाता है लेकिन जब तक सन्त रहते हैं, सतसंग होता है, साधक जहां साधना करते हैं, वह जमीन जगती है।

प्रसाद के बदले में कोई कीमत नहीं ली जाती है

बाबा उमाकान्त जी ने 19 मई 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि आपके पास प्रसाद कोई देने जाए तो सोच समझ के फिर उससे लेना। जो जिम्मेदार है या जिसको पहचानते हो, वह अगर आपको देगा तो उसी का प्रसाद, प्रसाद मानना। और इस प्रसाद के बदले अगर कोई किसी तरह की इच्छा करता है तो यदि वह प्रसाद आप ले भी लोगे, कुछ मांगा और उसके बदले आप दे दोगे तब न तो वह उसके लिए फलीभूत होगा और न यह प्रसाद आपके काम लायक रह जाएगा। यह तो प्रसाद है। प्रसाद की कोई कीमत नहीं होती है और न इसके बदले में कोई कीमत ली जाती है। प्रसाद तो बांटा जाता है, दिया जाता है। प्रसाद की कीमत तभी रहती है जब उसको कोई इसी भाव में ले और इसी भाव में कोई दे।

यहां से लोगों के दुख दूर किया जाए

बाबा उमाकान्त जी ने 9 फरवरी 2020 दोपहर बावल आश्रम में बताया कि यहां की तो हमारी योजना है कि कैसे भी हो, लोगों के दु:ख को दूर किया जाए। शरीर और आत्मिक दोनों कष्टों को दूर कराया जाए। जो कभी-कभी आत्मा रोने लगती है, जब अपना घर याद आता है, कहते हैं हम नहीं निकल पा रहे, फंसे पड़े हैं तो जब आत्मा रोती है तो आत्मा का भी कल्याण हो।

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