महात्मा निमित मात्र कोई चीज बताते हैं, तकलीफ तो अपनी दया से दूर करते हैं - सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज

जिभ्या और निभ्या के स्वाद से बचोगे तो लुटने से बचोगे नहीं तो तनिक सी असावधानी, चंचलता और सब कमाई ख़त्म

धारूहेड़ा (हरियाणा)। सब जीवों के सच्चे हितैषी, रूहानी दौलत लुटने से बचाने के लिए समय रहते सबको सावधान करने वाले, भगत द्वारा गलती करने के बाद ह्रदय से माफ़ी मांगने पर माफ़ करके दुबारा आध्यात्मिक कमाई शुरू करवाने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने 6 दिसंबर 2017 धारुहेड़ा (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि (गतांक से आगे) निमित्त मात्र महात्मा बताते हैं, बाकी दया तो अलग से जारी करते हैं। क्योंकि कर्मों की सजा होती है। कर्मों को जब काट देते हैं तो वह सजा खत्म हो जाती है। कर्मों की सजा बीमारी, गरीबी, अपमान (के रूप) में आती है। तो दल्ला की जो भी साधना थी, सब धीरे-धीरे खत्म हो गई और मान-सम्मान अहंकार का भूत सवार हो गया। जो भी आवे, उसी को बोलते, कहते चले जावे। कुछ दिन बाद दल्ला बीमार पड़े और हालत खराब हुई तो याद करे गुरु को। गुरु भी दर्शन न दे। गुरु की भी दया न मिल पाई। तब अपने साधक गुरु भाई को याद किया। 

गुरु भाई को आगे बढ़ाना चाहिए 

कहा है गुरु भाई का बहुत बड़ा रिश्ता होता है। एक ही रक्तबीज के सगे भाई तो भूल जाते हैं लेकिन गुरु भाई नहीं भूलते। गुरु भाई का यहां का और वहां का भी रिश्ता होता है। जो नहीं समझ पाते हैं वो लोग ही गुरु भाइयों से लड़ते, गुरु भाई का ही पैर खींचते, ठगते रहते हैं। जैसे भाई, भाई की मदद करता है, वैसे गुरु भाई की मदद करनी चाहिए, गुरु भाई से प्रेम बनाना चाहिए। जैसे भाई, भाई को आगे बढ़ाता है कि ये मेरे ही कुल खानदान दादा पिता का नाम बढ़ाएगा, ऐसे ही गुरु भाई को आगे बढ़ाना चाहिए कि ऐसे ही हमारे गुरु का नाम होगा। गुरु भाई को आगे बढ़ाएंगे तो गुरु का ही नाम आगे फैलेगा। ऐसा सोच होना चाहिए। 

गुरु भाई उपरी लोकों में भी मिलते हैं 

तो गुरु भाई को याद किया। गुरु भाई वहां (उपरी लोकों में) भी मिलते हैं और यहां भी मदद कर देते हैं, जिनके भाव अच्छे होते हैं। दोनों के भाव के ऊपर निर्भर करता है। एक का भाव अच्छा हुआ, दूसरे का नहीं हुआ तो भी नहीं हो पाता है। तो दल्ला ने जब गुरु भाई को याद किया, जब गुरु भाई दल्ला के पास आए और कहा तूने तो सब खत्म कर दिया। तू तो लुट गया दल्ला, मान-सम्मान अहंकार में लुट गया, छोटी चीजों में तो लूट गया। बड़ी चीज को तूने खो दिया। अब तो दल्ला तेरे को भोगना पड़ेगा। और जब दल्ला रोया चिल्लाया, उनसे प्रार्थना किया और उन्होंने गुरु से जब प्रार्थना किया, कहा अब  इसके ऊपर दया करो तब जाकर उसके प्राण निकल पाए। नहीं तो उसी शरीर से भोगना पड़ता। तब उसको छुटकारा मिल पाया। 

जिभ्या और निभ्या के स्वाद से बचोगे तो लुटने से बचोगे 

इसलिए साधकों को बहुत होशियार रहने की जरूरत है। आपकी जिनकी भी साधना बन जाए और कुछ हासिल हो जाए, उस दौलत को गांठ बांध करके रखो। उसको इधर-उधर लुटाने की जरूरत नहीं है। और यदि आप नभ्या और जिभ्या के स्वाद से बचे रहोगे, उसकी आदत अगर आप नहीं खराब करोगे तो फिर आपके लुटने के चांस नहीं रहेंगे। नहीं तो ज्यादातर इसी में लुट जाते हैं। उसी में तनिक सी असावधानी में आंख कान मुंह सब चंचल हो जाते हैं, चंचलता वाली बात को ही सुनना पसंद करते हैं जिससे मन और मोटा हो जाए, अच्छे कर्म खत्म हो जाए और बुरे कर्म आ जाए। वही आंखों से देखना चाहता है। इसलिए होशियारी का संसार है, इस संसार में साधकों को बहुत ही होशियार रहने की जरूरत है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ