सन्त बाबा उमाकान्त जी ने रक्षाबंधन पर्व पर दिया गुरु की दया से परिपूर्ण रक्षा सूत्र

पूरी दया और मदद लेने के लिए महाराज जी ने समझाए रक्षा सूत्र के नियम और समय सीमा

उज्जैन (म.प्र.)। भक्तों की जान माल की रक्षा करने के लिए अपनी दया विभिन्न माध्यमों से जारी करने वाले, जो उनको नहीं भी मानते उनके लिए भी बचाव का रास्ता बताने वाले, जैसे-जैसे समय और खराब आता जा रहा है वैसे-वैसे अपनी दया को भी बढ़ाते जाने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने रक्षाबंधन कार्यक्रम में 30 अगस्त 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि समय-समय पर आदेश आपको मिलता रहता है। गुरु पूर्णिमा में मिले आदेश के अनुसार प्रेमियों ने रक्षाबंधन तक देश-विदेश में जगह-जगह गुरु पूजन किया, प्रसाद लोगों तक पहुंचाया। अब रक्षाबंधन का आदेश रक्षा बांधने, बनवाने का और प्रसाद पहुंचाने का कार्यक्रम शरद पूर्णिमा तक चलेगा। तब और आदेश मिलेगा।

रक्षा सूत्र कब और कैसे मददगार होगा

यहां से रक्षा (सूत्र) और प्रसाद लेकर जाना। रक्षा सूत्र मिला कर और प्रसाद बना कर बांटना। पुरुष-पुरुषों को, माताएं-माताओं को, बच्चियों को बाँध दें। जहां-जहां कार्यक्रम, पूजन, रक्षा सूत्र बांटा जाएगा, वहां भी इसी तरह से होगा। यह रक्षा सूत्र जो बटेगा, यह सब को नहीं दिया जाएगा। नामदानियों को तो दे देना रहेगा लेकिन जो गैर नामदानी है, मांस मछली खाते हैं और कार्यक्रम में आते हैं, उनको नहीं बांधना, न देना रहेगा। वह अगर संकल्प बना लेते हैं कि हम आज से (मांसाहार) छोड़ दे रहे हैं तो सतसंगी उनको बांध देगा। नहीं तो अगर वो लेकर भी चले जाएंगे, किसी को बांधेंगे तो कोई गारंटी नहीं है कि उनको दया बराबर मिलेगी ही मिलेगी, उनकी रक्षा की गारंटी नहीं रहेगी। लेकिन अगर मांस मछली छोड़ने का संकल्प बना लेगा और रक्षा बंध जायेगा तो तो गुरु महाराज की दया से मुसीबत में उसकी रक्षा होगी। यदि ऐसे लोगों के साथ में रहे जिसमें लोग मारे जाएं और उसकी जान बच जाए, उसका केवल घुटना हाथ आदि टूट जाए लेकिन जान बच जाए तो वह भी दया माना जाता है क्योंकि ये मनुष्य शरीर फिर जल्दी मिलता नहीं है और इसी में भजन भाव भक्ति सेवा हो पाती है। तो कुछ न कुछ रक्षा का तरीका निकल आएगा और जान बचेगी। कब? जो रक्षा को बंधवायेगा, उसको जब याद करता रहेगा जिसने रक्षा भेजा है (यानी वक़्त के सन्त सतगुरु को)। बाबा जयगुरुदेव जी की दया-दुआ लेकर के ये रक्षा भेजी जा रही है। भूलना मत। दायीं हाथ की कलाई पर बांधा जाता है। नजर पड़ती रहेगी, याद आता रहेगा कि किसने भेजा है, मंत्र से जगा कर भेजा है, दया देकर भेजा गया है, बराबर याद करता रहेगा तब गुरु महाराज उसकी रक्षा करेंगे। 

रक्षा सूत्र और प्रसाद बनाने व बांटने का सही तरीका

ये रक्षा सूत्र पहले के सूत्रों से ज्यादा असरदार होगा। अब इस बात की जरुरत भी है। जैसे भारी मर्ज को दूर करने के लिए वैद्य कई दवाओं को खूब कूट-पीस कर मिलकर बहुत असरकारी दवाई बनाते हैं ऐसे ही इसे भी गुरु की दया लेकर तैयार किया गया है। ये सब नामदानियों तक पहुँच जाए, ये आप प्रेमियों सतसंगियों की जिम्मेदारी है। जगह-जगह आश्रम, कार्यालय, साप्तहिक सतसंग के स्थान बने हैं, सब जगहों पर जैसे-जैसे ये रक्षा सूत्र पहुंचता जाए, वैसे-वैसे कार्यक्रम सेट कर लो। जो रक्षा सूत्र वहां बटेगा, वह यहां से गए रक्षा सूत्र से स्पर्श हो जाना चाहिए। 

स्पर्श के साथ ही जयगुरुदेव नाम की ध्वनि 2-4-8 बार जरूर बोल लेना तो वह भी इसी तरह से ताकतवर हो जाएगा, उसमें भी इसी तरह से दया दुआ जारी हो जाएगी। यह अभियान 2 महीना चलेगा। शरद पूर्णिमा पर गुरु की दया रही तो आपको तब नया आदेश मिलेगा। अभी बहुत खराब समय आ रहा है। कब कहां आग लग जाए, आदमी को मारने लग जाएं, किसका घर जला दे, गिरा दे, विस्फोट हो जाए, उतावलेपन में आकर के, जातिवाद कौमवाद पार्टीवाद में आकर आदमी एक-दूसरे को मारने काटने लग जाए, किसको कब गोली मार दी जाए, कब कहां क्या हो जाए, कोई भरोसा नहीं है। लोगों की जान बचाना बहुत जरूरी है। यह रक्षा सूत्र जब हाथ में बंध जाएगा, उसे देखते रहेंगे, जयगुरुदेव नाम बोलते रहेंगे, याद करते रहेंगे तो बचत होगी। लेकिन देना उन्ही को है जो संकल्प बना लेंगे कि अब से हम किसी भी पशु-पक्षी का मांस नहीं खाएंगे। 

बाकी लोगों को प्रसाद दे देना। यहां से प्रसाद ले जाना, इसमें मिला लेना और दे देना और कह देना कि जयगुरुदेव नाम बोल करके खा लो, यह प्रसाद आपको अकल बुद्धि देगा, आपका मन ही जब किसी दिन बदल जाएगा तब आप आ जाना। तो प्रसाद तो उनका मन बदलेगा लेकिन रक्षा ले लेंगे तो कोई गारंटी नहीं है, शाम को पियक्कड़ फिर मिल जाएंगे, फिर पिला देंगे। तो जब संकल्प बना लेंगे तब रक्षा सूत्र देना है। कोशिश करो कि यह रक्षा सूत्र देश-विदेश में जन्माष्टमी तक पहुंच जाए। कैसे भी आप इसको पहुंचवा दो। एक सप्ताह के अंदर आप पहुंचा दो और वहां के सूत्रों से यह स्पर्श हो जाए और फिर उसके बाद जगह-जगह पर आप उससे छुआते रहो और कार्यक्रम करते रहो।

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