जिस मिट्टी-पत्थर के घर को अपना घर कहते हो, सच पूछो तो ये अपना घर नहीं है - बाबा उमाकान्त जी

धन को अच्छे काम, जनहित के काम, जहाँ पाप से बचाया जाता है, वहां लगाओ

उज्जैन (म.प्र.)। तन मन धन को परोपकार में लगाने की प्रेरणा देने वाले, पाप से बचाने वाले, गृहस्थ आश्रम में प्रभु प्राप्ति का रास्ता बताने वाले, अपने असली घर सतलोक जयगुरुदेव धाम पहुंचाने वाले इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 31 जुलाई 2023 सायं उज्जैन में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि मिट्टी-पत्थर के घर को जिसको आप अपना घर कहते हो देखो यह घर सच पूछो तो अपना नहीं है। मौत के बाद इस घर में और कोई रहेगा। जो बाप-दादा के बनाए हुए घर में रहते हो, बाप-दादा भी यही कहते थे- यह घर मेरा, यह घर मेरा। घर उनका नहीं हुआ तो आपका कैसे होगा?

बाप-दादा का छोड़ा सामान उपयोग में लेते हो। तो यह घर, सामान, दुनिया की चीजें आपकी नहीं है, सब यहीं छूट जाएंगी। यहां की कोई भी चीजें अपने न काम आने वाली है न अपनी है। तो अपना घर कहां है? जहां जाने के बाद फिर इस मृत्युलोक, दुःख के संसार में दुःख झेलने के लिए आना न पड़े, वो है अपना घर। तो जब तक यह शरीर चलता है तब तक इस आत्मा को अपने घर पहुंचाया जा सकता है, इसका आना-जाना वहां किया जा सकता है और जब मौत हो जाए, शरीर छूट जाए तब इस आत्मा को उस प्रभु में विलीन किया जा सकता है, उसकी गोदी में हमेशा-हमेशा के लिए बैठाया जा सकता है।

गृहस्थ आश्रम में शरीर चलाने के लिए का साधन रहता है लेकिन महात्मा हो जाने पर प्रभु पर निर्भर रहना पड़ता है

शरीर छोड़ने के बाद न तो किसी को भगवान आज तक मिला और न किसी को मिलेगा। मिला अगर तो मनुष्य शरीर में मिला। जिंदा शरीर में रहते-रहते मिला और ज्यादातर देखो लोगों को गृहस्थ आश्रम में ही प्रभु प्राप्त हुआ। क्योंकि गृहस्थ आश्रम में शरीर को चलाने की, दुनिया की इच्छाओं की पूर्ति के लिए साधन रास्ता खुला रहता है और सन्यासी (महात्मा) हो जाने पर ये सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। उस समय पर तो प्रभु पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कैसे निर्भर रहना पड़ता है? जैसे पालतू जानवर को उसका मालिक जब खिलाएगा, पानी पिलाएगा, जैसे रखेगा तब ही, वैसे ही पाएगा। ऐसे ही गति सच पूछो तो गृहस्थ आश्रम छोड़ने के बाद इंसान की हो जाती है। तो अगर वह भगवान मिल सकता है तो मनुष्य शरीर में ही मिल सकता है। वह रास्ता आपके शरीर के अंदर में ही है। इन्हीं दोनों आंखों के बीच से गया हुआ है। इसी को बहुत से लोगों को सन्तों ने बताया। उन्हीं को समरथ गुरु सन्त कहा गया। हमारे गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी बहुत लोगों को रास्ता बताए, रास्ते पर चलाए और मंजिल तक पहुंचा दिया। अब वो इस दु:ख के संसार में बीमारी, लड़ाई-झगड़ा, बेईमानी, ईर्षा-द्वेष झेलने के लिए आने वाले नहीं हैं। इन तकलीफों में वो अब पड़ने वाले नहीं है। उनकी आत्मा की मुक्ति हो गई, मोक्ष मिल गया। तो आपको वो रास्ता (नामदान) गुरु के आदेश से ही बताऊंगा। इसके लिए आपको घर, जमीन-जायदाद, बाल-बच्चों किसी को छोड़ना नहीं रहेगा। आप गृहस्थ आश्रम में रहो ,आपके पास है तो अच्छा खाओ अच्छा पहनो अच्छे गाड़ी-घोड़ा में चलो। लेकिन उसी को अपना मत समझ लो और उसी में मत आप फंसे रहो।

धन को अच्छे काम में, जनहित के काम में, जहाँ पाप से बचाया जाता है, वहां लगा दो

धन दौलत भी उतना ही इकट्ठा करो, जितना आपके, आपके शरीर के, खाने, पहनने, रहने, मान-सम्मान दिलाने के काम आ जाए, आपके आश्रित बच्चे, माता-पिता, जो भी परिवार है उसके लिए काम में आ जाए, कोई दरवाजे पर भूखा दुखा आ जाए तो उसको दो रोटी खिला दो, प्यासा आ जाए तो पानी पिला दो, उसका दु:ख दूर कर सकते हो तो उसका दु:ख दूर कर दो। उसमें इसको इस्तेमाल करो। इससे भी अगर ज्यादा हो जाए, बच जाए तो रखो मत नहीं तो मन उसी में लगा रहेगा और किसी दिन यही धन आपसे पाप करवा देगा। उसको लगा दो। कहां? अच्छी जगह पर लगा दो। जहां भी तुम्हारे समझ में आवे कि यहां से नेक काम, अच्छा काम, जनहित का काम होता है, पाप से यहां बचाया जाता है, पाप से लोगों को दूर करने का उपदेश दिया जाता है, वहां पर लगा दो।

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