दंबग गुंडे की वजह से गांव से 50 परिवारों का पलायन, आदिवासी जिंदगी जीने को मजबूर 200 लोग


  • दबंगों का कहर जारी सरकार को खुले आम चुनौती
  • नमक रोटी खाकर अधेरे में रहने को मजबूर व नदी किनारे बनाया घासफूस की झोपडी

बाँदा। जनपद के कमासिन थाना क्षेत्र के एक गांव में एक नही लगभग 50 परिवारों पर दबंगों का कहर इस कदर हावी है कि ये सभी परिवार अपना गांव और अपने अपने घरों से पलायन कर जंगल में रहने के लिए मजबूर हैं। इनकी स्थिति इतनी दयनीय हैं कि एक बार जरूर सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आखिर ऐसी भी क्या दबंगई जो लोगों को खानाबदोश की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दे। बल्कि एक जीता जागता सत्य है दंबग ने इनके घरों के आने जाने के रास्ते का बंद कर दिया ह्रै जिससे ये ग्रामीण लगभग 14 महीने से लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन आज तक इन परिवारों को न्याय नहीं मिल पाया है। 

फिलहाल अगर सरकार की बात करें तो जिस तरह से सरकार कहती है कि गुंडे जनपद छोड़ें या फिर अपराध को लेकिन कहीं न कहीं जिस तरह से इन दबंगों का कहर जारी है वो सरकार को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। अब देखना यह है कि कब इन परिवारों को न्याय मिलेगा। आपको बता दें कि मामला बबेरू तहसील क्षेत्र के कमासिन में आने वाले जुरावरपुर के मजरे घोषण गांव का है। जहां के ग्रामीण दबंगों के कहर से जंगल में रहने के लिए मजबूर हैं।

जैसे ही मीडिया टीम को इनकी जानकारी मिली तो स्वयं उस जंगल में जा कर मौके का जायजा लिया। जब हमारी टीम गांव पहुची तो हमारी टीम को भी उस जगह तक पहुचने में पसीना छूट गया। क्योंकि जहां इन ग्रामीणों ने अपना डेरा डाल रखा था वह एक दम बीहड़ में था। जहां पर कोई वाहन तो छोडिये पैदल तक जल्दी नहीं पहुचा सकता था। 

बरहाल हमारी टीम जैसे तैसे उस जगह तक पहुची और उन ग्रामीणों की जमीनी हकीकत जानने का प्रयास किया तो सुनकर हमारे भी होश उड़ गए कि आखिर केवल रास्ते के विवाद को लेकर कोई इतना निर्दयी हो सकता है कि गांव के 50 परिवारों को जंगल में रहना पड़े।

लेकिन यही सत्य है कि इन ग्रामीणों को जंगल में ही आदिवासियों की तरह जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। अगर इन 50 परिवारों के सदस्यों की बात करें तो इनकी संख्या लगभग 200 है। इनमें तमाम छोटे छोटे बच्चे, बच्चियां, गर्भवती महिलाएं व वृद्ध महिलाएं भी है। जिनको यहां रह कर जीवन गुजारना पड़ रहा है। बहरहाल, जैसे ही हम जुरावरपुर गांव के अंदर दाखिल हुए तो देखा कि इस विवाद को निपटाने के लिये उप जिलाधिकारी वंदिता श्रीवास्तव क्षेत्राधिकारी सियाराम और कमासिन थानाध्यक्ष, तहसीलदार लेखपाल सहित तमाम सरकारी कर्मचारी वहां मौजूद थे। 

तहसील के तमाम अधिकारी कर्मचारी उस विवादित स्थल तक तो पहुंच गए। लेकिन जिस जगह जंगल में यह सभी लोग रहते हैं वहां पर आने जाने का रास्ता न होने के कारण अधिकारी भी वहां तक पहुंचने की हिम्मत नही जुटा पाये। अधिकारियों की इतनी हिम्मत भी नहीं पड़ी कि जहां पर यह पीड़ित परिवार रह रहा है वहां की स्थिति देख ले।

अधिकारियों द्वारा विवाद को खत्म कराने के लिये दोनों पक्षों कों बैठा कर पंचायत की जा रही थी ताकि मामले को शांत किया जा सके। लेकिन घंटों पंचायत होने के बाद कोई भी ऐसा निष्कर्ष नही निकला और पुलिस एक व्यक्ति को हिरासत में लेकर अपने साथ ले गयी और सारे अधिकारी दोनों पक्षों को समझा बुझा कर अगले दिन तहसील आने की बात कह कर चले गये! जिससे उन परिवारों को अपने घरों में वापस आने का अवसर मिल सके। 

आपको बताते चलें कि ये तो हमारे सामने की पंचायत है लेकिन इसके पहले भी तमाम अधिकारियों के द्वारा पंचायत की गई लेकिन कोई भी निष्कर्ष नही निकला। आखिर किस तरह से ये निषाद परिवार अपना जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। इनके बच्चों ने बीते 14 महीनों से विद्यालय का चेहरा भी नहीं देखा लेकिन उसके बाद भी इनके अंदर पढ़ाई को लेकर इस कदर जज्बा है कि अकेले ही जंगल में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं। दबंगो के कहर का आलम यह है कि ये ग्रामीण न तो अपने घर जा सकते हैं और न ही खेतों में फसल की रखवाली करने। क्योकि यदि कोई भी जाता है तो उनको दबंगो के कोप का भागी होना पड़ता है। 

इतना ही नहीं इन बीते 14 महीनों में इन परिवारों ने चिकित्सा सेवा के अभाव की वजह से अपने परिवारों के तीन सदस्यों को खो चुके है। एक व्यक्ति को तो दबंगो का कहर भी भोगना पड़ा दबंगों ने खेत में पानी लगा रहे ग्रामीण को इस कदर मारा की वह मरणासन अवस्था में छोड दिया। उसका इलाज कर्ज लेकर कराया गया लेकिन उसकी मानसिक स्थिति ठीक नही है।

सबसे बड़ी बात जिस मामले को लेकर यह विवाद चल रहा है इसको लेकर जिले के सारे अधिकारियों के द्वारा कवायत तो बहुत की गई लेकिन आज तक कोई भी हल नहीं निकला। 

जिस रास्ते को लेकर विवाद चल रहा है क्षेत्र के तहसीलदार व लेखपाल के द्वारा लगभग 22 बार जमीन की माप की गई लेकिन आज भी मामला ज्यो का त्यों पड़ा है और आज ये 200 लोग जंगल मे मौत से लड़ कर जीवन जीने के लिए मजबूर हैं।मौके पर मौजूद उप जिला अधिकारी वंदिता श्रीवास्तव से इस प्रकरण पर हमारे संवाददाता अरविंद श्रीवास्तव ने जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने कहा कि इस प्रकरण पर जिला अधिकारी महोदय का बयान ले ले अभी हम इस संबंध में कुछ नहीं बोलेंगे अभी मसला हल नहीं हुआ है।

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